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विशेषावश्यकभाष्य
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की तरह स्वप्रकाशन तथा परप्रबोधन में समर्थ है, अतः उसी का अनुयोग यहाँ उचित है । यहाँ जो आवश्यक का अधिकार है वह श्रुतरूप ही है ।" अनुयोग का अर्थ है सूत्र का अपने अभिधेय से अनुयोजन अर्थात् अनुसंबन्धन; अथवा सूत्र का अनुरूप प्रतिपादनलक्षणरूप व्यापार; अथवा सूत्र का अर्थ से अनु - अणु है - स्तोक है, तथा अनु = पश्चात् है उसकी अर्थ के साथ योजना अर्थात् सम्बन्ध स्थापन R
प्रस्तुत शास्त्र का नाम आवश्यक श्रुतस्कन्ध है । इसके सामायिकादि जो छः भेद हैं उन्हें अध्ययन कहते हैं । अतः 'आवश्यक', 'श्रुत', 'स्कन्ध', 'अध्ययन' आदि पदों का पृथक्-पृथक् अनुयोग करना चाहिए। 'आवश्यक' का नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप चार प्रकार का निक्षेप होता है । इनमें से प्रस्तुत भाष्य में द्रव्यावश्यक की आगम और नोआगमरूप से विस्तृत व्याख्या की गई है । अधिकाक्षर सूत्रपाठ के लिए कुणाल नामक राजपुत्र तथा कपि का उदाहरण दिया गया है । हीनाक्षर पाठ के लिए विद्याधर आदि के उदाहरण दिए गए हैं । उभय के लिए बाल तथा आतुर के लिए अतिभोजन तथा भेषजविपर्यय के उदाहरण दिए गए हैं । लोकोत्तर नोआगमरूप द्रव्यावश्यक के स्वरूप की पुष्टि के लिए साध्वाभास का दृष्टान्त दिया गया है । भावावश्यक भी दो प्रकार का होता है : आगमरूप तथा नोआगमरूप । आवश्यक के अर्थ का उपयोगरूप परिणाम आगमरूप भावावश्यक है । ज्ञानक्रियोभयरूप परिणाम नोआगमरूप भावावश्यक है । नोआगमरूप भावावश्यक के तीन प्रकार हैं : लौकिक, लोकोत्तर तथा कुपावचनिक । इन तीनों में से लोकोत्तर भावावश्यक प्रशस्त है अतः शास्त्र में उसी का अधिकार है ।"
आवश्यक के पर्याय ये हैं : आवश्यक, अवश्यकरणीय, ध्रुव, निग्रह, विशुद्धि, अध्ययनषट्क, वर्ग, न्याय, आराधना, मार्ग । भाष्यकार ने इन नामों की साथकता भी दिखाई है ।" इसी प्रकार श्रुत, स्कन्ध आदि का भी निक्षेप-पद्धति से विचार किया गया है । श्रुत के एकार्थक नाम ये हैं : श्रुत, सूत्र, ग्रंथ, सिद्धांत, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम । स्कन्ध के पर्याय ये हैं : गण, काय, निकाय, स्कन्ध, वर्ग, राशि, पुञ्ज, पिण्ड, निकर, संघात, आकुल, समूह । ७
आवश्यक श्रुतस्कन्ध के छः अध्ययनों का अर्थाधिकार इस प्रकार है : सामायिकाध्ययन का अर्थाधिकार सावद्ययोगविरति है, चतुविशतिस्तव का अर्थाधिकार गुणकीर्तन है, वन्दनाध्ययन का अर्थाधिकार गुणी गुरु की प्रतिपत्ति है, प्रतिक्रमण
१. ८३७–८४०. ४. गा० ८६९-८७०.
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२. गा० ८४१ - २. ३. गा० ८४७-८६८.
५. गा० ८७२-३ . ६. गा० ८९४. ७. गा० ९००.
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