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सप्तम प्रकरण
दशाश्रु तस्कन्धनियुक्ति यह नियुक्ति' दशाश्रुतस्कन्ध नामक छेदसूत्र पर है । प्रारंभ में नियुक्तिकार ने दशा, कल्प और व्यवहार सूत्र के कर्ता, चरम सकलश्रु तज्ञानी, प्राचीन गोत्रीय भद्रबाहु को नमस्कार किया है :
वंदामि भद्दबाहु, पाईणं चरमसयलसुअनाणि ।
सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासु कप्पे अ ववहारे ।। तदनन्तर 'एक' और 'दश' का निक्षेप-पद्धति से व्याख्यान किया है तथा दशाश्रु तस्कन्ध के दस अध्ययनों के अधिकारों का निर्देश किया है। प्रथम अध्ययन असमाधिस्थान की नियुक्ति में द्रव्य और भावसमाधि का स्वरूप बताया है तथा स्थान के नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, अद्धा, ऊर्ध्व, चर्या, वसति, संयम, प्रग्रह, योध, अचल, गणन, संधान और भाव--इन पंद्रह निक्षेपों का उल्लेख किया है :
नाम ठवणा दविए खेत्तद्धा उड्ढओ चरई वसही।
संजम पग्गह जोहो अचल गणण संधणा भावे ।। द्वितीय अध्ययन शबल की नियुक्ति में शबल का नामादि चार निक्षेपों से व्याख्यान किया गया है और बताया गया है कि आचार से भिन्न अर्थात् अंशतः गिरा हुआ व्यक्ति भावशबल है ।
तृतीय अध्ययन आशातना की नियुक्ति में दो प्रकार की आशातना की व्याख्या है : मिथ्याप्रतिपादनसम्बन्धी एवं लाभसम्बन्धी ( आसायणा उ दुविहा मिच्छापडिवज्जणा य लाभे अ)। लाभसम्बन्धी आशातना के पुनः नामादि छः भेद होते हैं।
चतुर्थ अध्ययन गणिसंपदा की नियुक्ति में 'गणि' और 'संपदा' पर्यों का निक्षेपपूर्वक विचार किया गया है। नियुक्ति कार ने गणि और गुणी को एका१. यह परिचय मुनि श्री पुण्यविजयजो के असीम सौजन्य से प्राप्त
दशाश्रु तस्कन्धचूणि की हस्तलिखित प्रति की नियुक्ति-गाथाओं के आधार पर लिखा गया है।
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