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प्रथम प्रकरण
भाष्य और भाष्यकार
. आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक टीकाएं नियुक्तियों के रूप में प्रसिद्ध है। नियुक्तियों की व्याख्यान-शैली बहुत गूढ एवं संकोचशील है। किसी भी विषय का जितने विस्तार से विचार होना चाहिए, उसका उनमें अभाव है। इसका कारण यही है कि उनका मुख्य उद्देश्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना है, न कि किसी विषय का विस्तृत विवेचन । यही कारण है कि नियुक्तियों की अनेक बातें बिना आगे की व्याख्याओं की सहायता के सरलता से समझ में नहीं आतीं। नियुक्तियों के गूढार्थ को प्रकटरूप में प्रस्तुत करने के लिए आगे के आचार्यों ने उन पर विस्तृत व्याख्याएं लिखना आवश्यक समझा। इस प्रकार नियुक्तियों के आधार पर अथवा स्वतंत्ररूप से जो पद्यात्मक व्याख्याएं लिखी गईं वे भाष्य के रूप में प्रसिद्ध हैं। नियुक्तियों की भाँति भाष्य भी प्राकृत में ही है।
भाष्य:
__ जिस प्रकार प्रत्येक आगम-ग्रंथ पर नियुक्ति न लिखी जा सकी उसी प्रकार प्रत्येक नियुक्ति पर भाष्य भी नहीं लिखा गया। निम्नलिखित आगम ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं : १. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. उत्तराध्ययन, ४. बृहत्कल्प, ५. पंचकल्प, ६. व्यवहार, ७. निशीथ, ८. जीतकल्प, ९. ओघनियुक्ति, १०. पिण्डनियुक्ति ।। __ आवश्यकसूत्र पर तीन भाष्य लिखे गए हैं : १. मूलभाष्य, २. भाष्य और ३. विशेषावश्यकभाष्य । प्रथम दो भाष्य बहुत ही संक्षिप्त रूप में लिखे गये और उनकी अनेक गाथाएं विशेषावश्यकभाष्य में सम्मिलित कर ली गई । इस प्रकार विशेषावश्यकभाष्य को तीनों भाष्यों का प्रतिनिधि माना जा सकता है, जो आज भी विद्यमान है। यह भाष्य पूरे आवश्यकसूत्र पर न होकर केवल उसके प्रथम अध्ययन 'सामायिक' पर है । एक अध्ययन पर होते हुए भी इसमें ३६०३ गाथाएं हैं। दशवैकालिकभाष्य में ६३ गाथाए हैं। उत्तराध्ययनभाष्य भी बहुत छोटा है। इसमें केवल ४५ गाथाएं हैं। बृहत्कल्प पर दो भाष्य हैं : बृहत् और लघु । बृहद्भाष्य पूरा उपलब्ध नहीं है । लघुभाष्य में ६४९०
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