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आवश्यकनियुक्ति
८१ वन्दना कितनी बार करनी चाहिए? इसका उत्तर देते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, अपराध आदि आठ अवस्थाओं में वन्दना करनी चाहिए।
वन्दना करते समय दो बार झुकना चाहिए, बारह आवर्त लेने चाहिए ( १. अहो, २. कायं, ३. काय, ४. जता भे, ५. जवणि, ६. ज्जं च भे। यह एक बार हुआ। इसी प्रकार दूसरी बार भी बोलना चाहिए ) तथा चार बार सिर झुकाना चाहिए।
जो पचीस प्रकार के आवश्यकों से परिशुद्ध होकर गुरु को नमस्कार करता है वह शीघ्र ही या तो निर्वाण प्राप्त करता है या देवपद पर पहुँचता है ।
कितने दोषों से मुक्त होकर वंदना करनी चाहिए? इसके उत्तर में नियुक्तिकार ने बत्तीस दोष गिनाये हैं जिनसे शुद्ध होकर ही वंदना करनी चाहिए।
वंदना किसलिए करनी चाहिए ? इसका समाधान करते हुए कहा गया है कि वंदना करने का मुख्य प्रयोजन विनय-प्राप्ति है क्योंकि विनय ही शासन का मूल है, विनीत ही संयती होता है, विनय से दूर रहने वाला न तो धर्म कर सकता है, न तप । ___ वन्दना की आवश्यकता और विधि की इतनी लम्बी भूमिका बाँधने के बाद आचार्य 'वन्दना' के मूल पाठ 'इच्छामि खमासमणो' की सूत्रस्पर्शी व्याख्या प्रारंभ करते हैं। इसके लिए १. इच्छा, २. अनुज्ञापना, ३. अव्याबाघ, ४. यात्रा, ५. यापना और ६. अपराधक्षमणा-इन छः स्थानों की नियुक्ति करते हैं । नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि निक्षेपों से इनका संक्षिप्त विवेचन करके वंदनाध्ययन की नियुक्ति समाप्त करते हैं । इसके बाद 'प्रतिक्रमण' नामक चतुर्थ अध्ययन शुरू होता है। प्रतिक्रमण :
प्रतिक्रमण का तीन दृष्टियों से विचार किया जाता है : १. प्रतिक्रमणरूप क्रिया, २. प्रतिक्रमण का कर्ता अर्थात् प्रतिक्रामक और ३. प्रतिक्रन्तव्य अर्थात् प्रतिक्र मितव्य अशुभयोगरूप कर्म । जीव पापकर्मयोगों का प्रतिक्रामक है। इसलिए जो ध्यानप्रशस्त योग हैं उनका साधु को प्रतिक्रमण नहीं करना १. गा. १२०७ २. गा. १२०९. ३. गा. १२११. ४. गा. १२१२-६. ५. गा. १२२०-१. ६. गा. १२२३. ७. स्वस्थानात्यत्परस्थानं प्रमादस्य वशाद् गतः । तत्रैव व्रमणं भूयः प्रतिक्रमणमुच्यते ॥ ८. गा. १२३६.
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