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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नागरिकशास्त्र :
बृहत्कल्प-लघुभाष्य के प्रथम उद्देश में ग्राम, नगर, खेड, कर्बटक, मडम्ब, पत्तन, आकर, द्रोणमुख, निगम, राजधानी आदि का स्वरूप बताया गया है । शीलांकाचार्यकृत आचारांग-विवरण के प्रथम श्रुतस्कन्ध के अष्टम अध्ययन के षष्ठ उद्देशक में भी इसी प्रकार का वर्णन है । भूगोल :
आवश्यक-नियुक्ति में चौबीस तीर्थंकरों के भिक्षालाभ के प्रसंग से हस्तिनापुर आदि चौबीस नगरों के नाम गिनाए गए हैं। पंचकल्प-महाभाष्य में क्षेत्रकल्प की चर्चा करते हुए भाष्यकार ने साढ़े पच्चीस आर्य देशों एवं उनकी राजधानियों का नामोल्लेख किया है। निशीथ-विशेषण के सोलहवें उद्देश में आर्यदेश की. सीमा इस प्रकार बताई गई है : पूर्व में मगध, पश्चिम में स्थूणा, उत्तर में कुणाला और दक्षिण में कौशाम्बी । राजनीति :
व्यवहार-भाष्य के प्रथम उद्देश में राजा, युवराज, महत्तरक, अमात्य, कुमार, नियतिक, रूपयक्ष आदि के स्वरूप एवं कार्यों पर प्रकाश डाला गया है । ऐतिहासिक चरित्र :
आवश्यकनियुक्ति में ऋषभदेव, महावीर, आर्य रक्षित, नप्त निह्नव, नागदत्त, महागिरि, स्थूलभद्र, धर्मघोष, सुरेन्द्र दत्त, धन्वन्तरि वैद्य, करकंड, पुष्पभूति आदि के चरित्र पर संक्षिप्त सामग्री उपलब्ध है। विशेषावश्यकभाष्य में आर्य वज्र, आर्य रक्षित, पुष्पमित्र, जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़भूति, अश्वमित्र, गंग, रोहगुप्त, गोष्ठामाहिल, शिवभूति आदि अनेक ऐतिहासिक पुरुषों के जोवन-चरित्र पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । आवश्यकचूणि में भगवान् ऋषभदेव एवं महावीर, भरत और बाहुबलि, गोशालक, चन्दनबाला, आनन्द, कामदेव, शिवराजर्षि, गंगदत्त, इलापुत्र, मेतार्य, कालिकाचार्य, चिलातिपुत्र, धर्मरुचि, तेतलीपुत्र, अभयकुमार, श्रेणिक, चेल्लणा, सुलसा, कोणिक, चेटक, उदायी, महापद्मनन्द, शकटाल, वररुचि, स्थूलभद्र आदि अनेक ऐतिहासिक व्यक्तियों से सम्बन्धित. आख्यान हैं। संस्कृति एवं सभ्यता: ____ दशवकालिक-नियुक्ति में धान्य एवं रत्न की चौबीस जातियाँ गिनाई गई है । बृहत्कल्प-लघुभाष्य के द्वितीय उद्देश में जांगिक आदि पाँच प्रकार के वस्त्र एवं औणिक आदि पाँच प्रकार के रजोहरण का स्वरूप बताया गया है । व्यवहार
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