________________
आवश्यकनियुक्ति
देश-चर्चा, ५. काल अर्थात् समय-चर्चा, ६. पुरुष अर्थात् तदाधारभूत व्यक्ति की चर्चा, ७. कारण अर्थात् माहात्म्य-चर्चा, ८. प्रत्यय अर्थात् श्रद्धा की चर्चा, ९. लक्षण-चर्चा, १०. नय चर्चा, ११. समवतार अर्थात् नयों की अवतारणाचर्चा, १२, अनुमत अर्थात् व्यवहार और निश्चयनय की दृष्टि से विचार, १३. किं अर्थात् स्वरूप-विचार, १४. भेद-विचार, १५. सम्बन्ध-विचार, १६. स्थान-विचार, १७. अधिकरण-विचार, १८. प्राप्ति-विचार, १९. स्थिति-विचार, २०. स्वामित्व-विचार, २१. विरहकाल-विचार, २२. अविरहकाल-विचार, २३. भव-विचार, २४. प्राप्तिकाल-संख्या विचार, २५. क्षेत्र-स्पर्शन-विचार, २६. निरुक्ति । ऋषभदेव-चरित्र:
उद्देश और निर्देश की निक्षेपविधि से चर्चा होने के बाद निगम की चर्चा प्रारम्भ होती है । निर्गम की चर्चा करते समय आचार्य यह बताते हैं कि भगवान् महावीर का मिथ्यात्वादि से निर्गम अर्थात् निकलना कैसे हुआ ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान महावीर के पूर्वभवों की चर्चा प्रारम्भ होती है । इतना ही नहीं अपितु इसी से भगवान् ऋषभदेव के युग से भी पहले होने वाले कुलकरों की चर्चा प्रारम्भ हो जाती है । इसमें उनके पूर्वभव, जन्म, नाम, शरीर-प्रमाण, संहनन, संस्थान, वर्ण, स्त्रियाँ, आयु, विभाग, भवनप्राप्ति, नीति-इन सब का संक्षिप्त विवरण है । अन्तिम कुलकर नाभि थे जिनकी पत्नी मरुदेवी थी । उन्हीं के पुत्र का नाम ऋषभदेव है ।' ऋषभदेव के अनेक पूर्वभवों का वर्णन करने के बाद नियुक्तिकार ने बताया है कि बीस कारणों से ऋषभदेव ने अपने पूर्वभव में तीर्थङ्कर नामकर्म बाँधा था। ये बीस कारण इस प्रकार हैं :
१. अरिहंत, २. सिद्ध, ३. प्रवचन, ४. गुरु, ५. स्थविर, ६. बहुश्रुत, ७. तपस्वी-इनके प्रति वत्सलता, ८ ज्ञानोपयोग, ९. दर्शन-सम्यक्त्व, १०. विनय, ११. आवश्यक, १२. शीलव्रत-इनमें अतिचार का अभाव, १३. क्षणलवादि के प्रति संवेगभावना, १४. तप, १५. त्याग, १६. वैयावृत्य, १७. समाधि १८. अपूर्वज्ञानग्रहण, १९. श्रुतभक्ति और २० प्रवचन-प्रभावना ।
इसके बाद भगवान् ऋषभदेव की जीवनी से सम्बन्ध रखने वाली निम्नोक्त घटनाओं का वर्णन है : जन्म, नाम, वृद्धि, जातिस्मरणज्ञान, विवाह, अपत्य, अभिषेक, राज्यसंग्रह । इन घटनाओं के साथ ही साथ उस युग के आहार, शिल्प, कर्म, ममता, विभूषणा, लेख, गणित, रूप, लक्षण, मानदण्ड, प्रोतन-पोत, व्यवहार,
१. गा० १४५-१७०. २. गा० १७८. ३. गा० १७९-१८१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org