________________
प्रास्ताविक
५५
भाष्य के प्रथम उद्देश में सत्रह प्रकार के धान्य- भाण्डारों का वर्णन है । निशीथविशेषचूणि के प्रथम उद्देश में दंड, विदंड, लाठी, विलट्ठी आदि का अन्तर बताया गया है । इसी चूर्णि के सप्तम उद्देश में कुडल, गुण, मणि, तुडिय, विसरिय, बालंभा, पलंबा, हार, अर्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, पट्ट, मुकुट आदि विविध प्रकार के आभरणों का स्वरूप वर्णन है । अष्टम उद्देश में उद्यानगृह, निर्याणगृह, अट्ट, अट्टालक, शून्यगृह, भिन्नगृह, तृणगृह, गोगृह आदि अनेक प्रकार के गृहों एवं शालाओं का स्वरूप बताया गया है । नवम उद्देश में कोष्ठागार, भांडागार, पानागार, क्षीरगृह, गंजशाला, महानसशाला आदि के स्वरूप का वर्णन है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org