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प्रास्ताविक
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अंचलगच्छीय महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य मेरुतुंगसूरि के शिष्य हैं । प्रस्तुत दीपिका के अतिरिक्त निम्नलिखित दीपिकाए भी इन्हीं की लिखी हुई हैं : दशवकालिकनियुक्ति-दीपिका, पिण्डनियुक्ति-दीपिका, ओघनियुक्ति-दीपिका, उत्तराध्ययनदीपिका, आचार-दीपिका । माणिक्यशेखरसूरि विक्रम की पन्द्रहवीं शती में विद्यमान थे। अजितदेवसूरिकृत आचारांगदीपिका :
यह टीका चन्द्रगच्छीय महेश्वरसूरि के शिष्य अजितदेवसूरि ने वि. सं. १६२९ के आस-पास लिखी है । इसका आधार शीलांकाचार्य कृत आचारांग-विवरण है। टीका सरल, संक्षिप्त एवं सुबोध है । विजयविमलगणिविहित गच्छाचारवृत्ति :
प्रस्तुत वृत्ति तपागच्छीय आनन्दविमलसूरि के शिष्य विजयविमलगणि ने वि. सं. १६३४ में लिखी है। इसका ग्रंथमान ५८५० श्लोक-प्रमाण है । वृत्ति विस्तृत है एवं प्राकृत कथानकों से युक्त है। विजयविमलगणिविहित तन्दुलवैचारिकवृत्ति : ____ यह वृत्ति उपयुक्त विजयविमलगणि ने गुणसौभाग्यगणि से प्राप्त तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक के ज्ञान के आधार पर लिखी है। वृत्ति शब्दार्थ-प्रधान है । इसमें कहीं-कहीं अन्य ग्रंथों के उद्धरण भी हैं। वानषिकृत गच्छाचारटीका :
प्रस्तुत टीका के प्रणेता वानरषि तपागच्छीय आनन्द विमलसरि के शिष्यानुशिष्य हैं । टीका संक्षिप्त एवं सरल है । टीकाकार ने इसका आधार हर्षकुल से प्राप्त गच्छाचार प्रकीर्णक का ज्ञान माना है । भावविजयगणिकृत उत्तराध्ययनव्याख्या :
प्रस्तुत व्याख्या तपागच्छीय मुनिविमलसूरि के शिष्य भावविजयगणि ने वि. सं. १६८९ में लिखी है । व्याख्या कथानकों से भरपूर है। सभी कथानक पद्यनिबद्ध हैं । व्याख्या का ग्रंथमान १६२५५ श्लोक-प्रमाण है। समयसुन्दरसूरिसंदृब्ध दशवैकालिकदीपिका :
प्रस्तुत दीपिका के प्रणेता समयसुन्दरसूरि खरतरगच्छीय सकलचन्द्रसूरि के शिष्य है । दीपिका शब्दार्थ-प्रधान है । इसका ग्रंथमान ३४५० श्लोक-प्रमाण है। यह वि. सं. १६९१ में स्तम्भतीर्थ (खम्भात) में पूर्ण हुई थी।
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