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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ज्ञानविमलसूरिग्रथित प्रश्नव्याकरण-सुखबोधिकावृत्ति :
यह वृत्ति विस्तार में अभयदेवसूरिकृत प्रश्नव्याकरण-वृत्ति से बड़ी है । वृत्ति के प्रारम्भ में आचार्य ने नवांगवृत्तिकार अभयदेवसूरि-विरचित प्रश्नव्याकरणवृत्ति की कृतज्ञता स्वीकार की है । वृत्तिकार ज्ञानविमलसरि का दूसरा नाम नयविमलगणि है । ये तपागच्छीय धोरविमलगणि के शिष्य हैं । प्रस्तुत वृत्ति के लेखन में कवि सुखसागर ने विशेष सहायता दी थी । वृत्ति का ग्रंथमान ७५०० श्लोक-प्रमाण है। इसका रचना-काल वि. सं. १७९३ के कुछ वर्ष पूर्व है। लक्ष्मीवल्लभगणिविरचित उत्तराध्ययनदीपिका :
दीपिकाकार लक्ष्मीवल्लभगणि खरतरगच्छोय लक्ष्मीकीतिगणि के शिष्य हैं । दीपिका सरल एवं सुबोध है । इसमें दृष्टान्तरूप अनेक संस्कृत आख्यान हैं । दानशेखरसूरिसंकलित भगवती-विशेषपदव्याख्या :
यह व्याख्या प्राचीन भगवतो-वृत्ति के आधार पर लिखो गई है । इसमें भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) सूत्र के कठिन-दुर्ग पदों का विवेचन किया गया है । व्याख्याकार दानशेखरसूरि जिनमाणिक्यगणि के शिष्य अनन्तहंसगणि के शिष्य हैं। प्रस्तुत व्याख्या तपागच्छनायक लक्ष्मीसागरसूरि के शिष्य सुमतिसाधुसूरि के शिष्य हेमविमलसूरि के समय में संकलित की गई थी। संघविजयगणिकृत कल्पसूत्र-कल्पप्रदीपिका : __ कल्पसूत्र की प्रस्तुत वृत्ति विजयसेनसूरि के शिष्य संघविजयगणि ने वि. सं. १६७४ में लिखी। वि. सं. १६८१ में कल्याणविजयसूरि के शिष्य धनविजयगणि ने इसका संशोधन किया । वृत्ति का ग्रन्थमान ३२५० श्लोक-प्रमाण है । विनयविजयोपाध्यायविहित कल्पसूत्र-सुबोधिका :
यह वृत्ति तपागच्छीय कीर्तिविजयगणि के शिष्य विनयविजय उपाध्याय ने वि. सं. १६९६ में लिखी तथा भावविजय ने संशोधित की। इसमें कहीं-कहीं धर्मसागरगणिकृत किरणावली एवं जयविजयगणिकृत दीपिका का खण्डन किया गया है । टीका का ग्रंथमान ५४०० श्लोक-प्रमाण है। समयसुन्दरगणिविरचित कल्पसूत्र-कल्पलता : ___ यह व्याख्या उपयुक्त दशवैकालिक-दोपिकाकार खरतरगच्छीय समयसुन्दरगणि को कृति है । इसका रचना-काल वि. सं. १६९९ के आस-पास है। वृत्ति का संशोधन करनेवाले हर्षनन्दन हैं। इसका ग्रंथमान ७७०० श्लोक-प्रमाण है।
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