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प्रास्ताविक
शान्तिसागरगणिविदृब्ध कल्पसूत्र कल्पकौमुदी :
यह वृत्ति तपागच्छीय धर्मसागरगणि के प्रशिष्य एवं श्रुतसागरगणिके शिष्य शान्तिसागरगणि ने वि. सं. १७०७ में लिखी । वृत्ति का ग्रंथमान ३७०७ श्लोकप्रमाण है ।
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'पृथ्वीचन्द्रसूरिप्रणीत कल्पसूत्र- टिप्पणक :
प्रस्तुत टिप्पणक के प्रणेता पृथ्वीचन्द्रसूरि देवसेनगणि के शिष्य हैं । देवसेनगण के गुरु का नाम यशोभद्रसूरि है । यशोभद्रसूरि राजा शाकम्भरी को प्रतिबोध देने वाले आचार्य धर्मघोष के शिष्य हैं । धर्मघोषसूरि के गुरु चन्द्रकुलीन शीलभद्रसूरि हैं ।
लोकभाषाओं में निर्मित व्याख्याएँ :
आगमों की संस्कृत व्याख्याओं की बहुलता होते हुए भी बाद के आचार्यों ने जनहित को दृष्टि से लोकभाषाओं में आगमों को व्याख्याएँ लिखना आवश्यक -समझा । परिणामतः तत्कालीन प्राचीन गुजराती में कुछ आचार्यों ने आगमों पर सरल एवं सुबोध बालावबोध लिखे । इस प्रकार के बालावबोध लिखने वालों में विक्रम की सोलहवीं शती में विद्यमान पार्श्वचन्द्रगणि एवं अठारहवीं शती में 'विद्यमान लोकागच्छीय ( स्थानकवासी ) मुनि धर्मसिंह के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। मुनि धर्मसिंह ने भगवती, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, चन्द्रप्रज्ञप्ति तथा सूर्यप्रज्ञप्ति को छोड़ स्थानकवासी सम्मत शेष २७ आगमों पर बालावबोध - टबे लिखे हैं | हिन्दी व्याख्याओं में मुनि हस्तिमलकृत दशवेकालिक - सौभाग्यचन्द्रिका एवं नन्दी सूत्र - भाषाटीका, उपाध्याय आत्मारामकृत दशाश्रुतस्कन्ध-गणपतिगुणप्रकाशिका, दशवैकालिक आत्मज्ञानप्रकाशिका, उत्तराध्ययन- आत्मज्ञानप्रकाशिका, उपाध्याय अमरमुनिकृत आवश्यक विवेचन ( श्रमणसूत्र ) आदि उल्लेखनीय हैं । आगमिक व्याख्याओं में सामग्री - वैविध्य :
जैन आगमों की जो व्याख्याएँ उपलब्ध हैं वे केवल शब्दार्थ तक ही सीमित नहीं हैं । उनमें आचारशास्त्र, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, नागरिकशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों से सम्बन्धित प्रचुर सामग्री विद्यमान है ।
आचारशास्त्र :
आवश्यक नियुक्ति का सामायिकसम्बन्धी अधिकांश विवेचन आचारशास्त्रविषयक है । इसी प्रकार अन्य नियुक्तियों में भी एतद्विषयक सामग्री की प्रचुरता है । विशेषावश्यक भाष्य में सामायिक आदि पाँच प्रकार के चारित्र का विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया गया है। जीतकल्प भाष्य, बृहत्कल्प-लघुभाष्य, बृहत्कल्प
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