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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
तथा सुबोध है । स्थान-स्थान पर कथानक भो उद्घृत किए गए हैं । ये कथानक प्राकृत में हैं । विवरण में विशेषावश्यकभाष्य - स्वोपज्ञवृत्तिकार, प्रज्ञाकरगुप्त, आवश्यकचूर्णिकार, आवश्यक मूलटीकाकार, आवश्यक मूलभाष्यकार, लघीयस्त्रयालंकारकार अकलंक, न्यायावतार - विवृत्तिकार आदि का उल्लेख है । उपलब्ध विवरण चतुर्विंशतिस्तव नामक द्वितीय अध्ययन के 'थूभं रयणविचित्तं कुथु सुमिस्मि तेण कुथुजिणो' को व्याख्या तक हो है । उसके बाद 'साम्प्रतमरः' अर्थात् 'अब अरनाथ के व्याख्यान का अधिकार है' इतना-सा उल्लेख और है । इसके बाद का विवरण अनुपलब्ध है । उपलब्ध विवरण का ग्रन्थमान १८००० श्लोक-प्रमाण है । बृहत्कल्प-पीठिकावृत्ति :
यह वृत्ति भद्रबाहुकृत बृहत्कल्प-पीठिकानियुक्ति एवं संघदासकृत बृहत्कल्पपीठिकाभाष्य ( लघुभाष्य ) पर है । आचार्य मलयगिरि पीठिकाभाष्य की गा० ६०६ पर्यन्त ही प्रस्तुत वृत्ति लिख सके । शेष वृत्ति बाद में आचार्य क्षेमकीर्ति ने लिखो । इस तथ्य का प्रतिपादन स्वयं क्षेमकोति ने अपनी वृत्ति प्रारम्भ करते समय किया है । प्रस्तुत वृत्ति के आरम्भ में आचार्य मलयगिरि ने बृहत्कल्पलघुभाष्यकार एवं बृहत्कल्प - चूर्णिकार के प्रति कृतज्ञता स्वीकार की है । वृत्ति में प्राकृत गाथाओं के साथ ही साथ प्राकृत कथानक भी उद्धृत किए गए हैं। मलयगिरिकृत वृत्ति का ग्रन्थमान ४६०० श्लोकप्रमाण है ।
मलधारी हेमचन्द्रसूरिकृत टीकाएँ :
मलधारी हेमचन्द्रसूरि का गृहस्थाश्रम का नाम प्रद्युम्न था । प्रद्युम्न राजमन्त्री थे । ये अपनी चार स्त्रियों को छोड़कर मलधारी अभयदेवसूरि के पास दीक्षित हुए थे । अभयदेव की मृत्यु होने पर अर्थात् वि० सं० ११६८ में हेमचन्द्र ने आचार्य पद प्राप्त किया था । सम्भवतः ये वि० सं० १९८० तक इस पद पर प्रतिष्ठित रहे एवं तदनन्तर इनका देहावसान हुआ । इनके किसी भी ग्रन्थ को प्रशस्ति में वि० सं० १९७७ के बाद का उल्लेख नहीं है । इन्होंने निम्नोक्त आगम - व्याख्याएँ लिखी हैं : आवश्यक - टिप्पण, अनुयोगद्वार - वृत्ति, नन्दि - टिप्पण और विशेषावश्यकभाष्य - वृहद्वृत्ति । इनके अतिरिक्त निम्न कृतियाँ भी मलधारी हेमचन्द्र की ही हैं: शतक - विवरण, उपदेशमाला, उपदेशमालावृत्ति, जीवसमास - विवरण, भवभावना, भवभावना - विवरण | इन ग्रन्थों का परिमाण लगभग ८०००० श्लोक - प्रमाण है । आवश्यक टिप्पण :
यह टिप्पण हरिभद्रकृत आवश्यक-वृत्ति पर है । इसे आवश्यकवृत्ति प्रदेशव्याख्या अथवा हारिभद्रीयावश्यकवृत्ति - टिप्पणक भी कहते हैं । इस पर हेमचन्द्र के
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