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प्रास्ताविक विपाकवृत्ति :
प्रस्तुत वृत्ति भी शब्दार्थ-प्रधान है । इसमें अनेक पारिभाषिक शब्दों का संक्षिप्त एवं संतुलित अर्थ किया गया है । उदाहरण के लिए राष्ट्रकूट-रट्ठकूड-रट्ठउड का अर्थ इस प्रकार है : 'रठउडे' त्ति राष्ट्रकूटो मण्डलोपजीवी राजनियोगिकः । वृत्ति का ग्रन्थमान ९०० श्लोकप्रमाण है । औपपातिकवृत्ति :
यह वृत्ति भी शब्दार्थ-प्रधान है । इसमें वृत्तिकार ने सूत्रों के अनेक पाठभेदवाचनाभेद होना स्वीकार किया है । प्रस्तुत वृत्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक, सामाजिक, प्रशासनसम्बन्धी एवं शास्त्रीय शब्दों की परिभाषाएँ दी गई हैं । यत्रतत्र पाठान्तरों एवं मतान्तरों का भी उल्लेख किया गया है । इस वृत्ति का संशोधन द्रोणाचार्य ने पाटन में किया था। वृत्ति का ग्रन्थमान ३१२५ श्लोकप्रमाण है।
मलयगिरिसूरिकृत टीकाएँ :
मलयगिरिसूरि एक प्रतिभासम्पन्न टीकाकार हैं । इन्होंने जैन आगमों पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण टीकाएं लिखी हैं । ये टीकाएँ विषय-वैशद्य एवं निरूपण कौशल दोनों दृष्टियों से सफल है । ___ मलयगिरिसूरि आचार्य हेमचन्द्र ( कलिकालसर्वज्ञ ) के समकालीन थे एवं उन्हीं के साथ विद्यासाधना भी की थी। आचार्य हेमचन्द्र की भांति मलयगिरि भी आचार्य-पद के धारक थे एवं आचार्य हेमचन्द्र को अति सम्मानपूर्ण दृष्टि से देखते थे। आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन होने के कारण मलयगिरिसूरि का समय वि० सं० ११५०-१२५० के आसपास मानना चाहिए। ___ मलयगिरिविरचित निम्नोक्त आगमिक टीकाएँ आज उपलब्ध हैं : १. व्याख्याप्रज्ञप्ति-द्वितोयशतकवृत्ति, २. राजप्रश्नीयटीका, ३. जीवाभिगमटीका, ४. प्रज्ञापनाटीका, ५. चन्द्रप्रज्ञप्तिटीका, ६. सूर्यप्रज्ञप्तिटीका, ७. नन्दीटीका, ८. व्यवहारवृत्ति, ९. बृहत्कल्पपीठिकावृत्ति, १०. आवश्यकवृत्ति, ११. पिण्डनियुक्तिटीका, १२. ज्योतिष्करण्डकटीका । निम्नलिखित आगमिक टीकाए अनुपलब्ध हैं : १. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका, २. ओघनियुक्तिटीका, ३. विशेषावश्यकटीका। इनके अतिरिक्त मलय गिरि की अन्य ग्रन्थों पर सात टीकाएँ और उपलब्ध हैं एवं तीन टीकाएँ अनुपलब्ध हैं। इनका एक स्वरचित शब्दानुशासन भी उपलब्ध है। इस प्रकार आचार्य मलयगिरि ने कुल छब्बीस ग्रन्थों का निर्माण किया जिनमें पच्चीस टीकाएँ हैं। यह ग्रन्थराशि लगभग दो लाख श्लोकप्रमाण है। इस
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