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३० : धर्सवन्दु करना, कुलधर्मका पालन, फिजूल खर्ची न करना, योग्य स्थान पर योग्य क्रिया करना, उत्तम कार्योम लगे रहना, प्रमादका त्याग, लोकाचारका अनुसरण, सब जगह औचित्यका पालन करना, प्राणोके कंठमें आने पर भी निन्दनीय कार्य न करना-इत्यादि गुण सदाचारमें आते हैं । शिष्ट पुरुष इन गुणोका पालन करते है और ऐसे गुणवान पुरुषोके चरित्रकी प्रशंसा करना चाहिए। प्रशंसा करनेसे ऐसे गुणोकी और आकर्षण होता है । जैसे
"गुणेषु यत्नः क्रियतां, किमाटोपैः प्रयोजनम् ? ।
विक्रीयन्ते न घण्टाभिर्गावः क्षीरविवर्जिताः ॥१५॥ तथा-शुद्धाः प्रसिद्धिमायान्ति, लघवोऽपीह नेतरे।
तमस्यपि विलोक्यन्ते, दन्तिदन्ता न दन्तिनः" ॥१६॥
-गुण ग्रहण करनेका यत्न करना चाहिए, सिर्फ आडबरसे क्या लाभ है ? जैसे गाय, विना दूधके केवल गलेमें घंटा बांधनेसे नहीं बिकती, दूधके कारण बिकती है । और शुद्ध वस्तु छोटी होने पर भी प्रसिद्ध हो जाती है पर अशुद्ध वस्तु बडी होने पर भी अप्रसिद्ध रह सकती है जैसे अंधेरेमें भी हाथी के दांत चमकते हैं पर हाथी बडा होने पर भी नहीं दीखता ।। १५-१६॥ . इसी प्रकार पुरुषकी सब जगह पूजा होती है, सुशील पुरुपोका संग करनेसे गुण आते है तथा मनकी मलिनता दूर होती है। : तथा अरिषड्वर्गत्यागेनाविरुद्धार्थप्रतिपत्त्येन्द्रियजय
इति ॥१५॥