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३७० : धर्मविन्दु
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अत: चाहे गृहस्थधर्म हो, चाहे यतिधर्म - उचित अनुष्ठान ही
यत्कारी है उसमे दुराग्रह नहीं है ।
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उचित अनुष्ठान हितकारी क्यों है ? वह कहते है - ; भानसारत्वात् तस्येति ||२७|| (३९४)
मूलार्थ - भावनाकी प्रधानतासे उचित अनुष्ठान श्रेयकारी है। विवेचन - भावना ही उचित अनुष्ठानमें प्रधान होती है अतः वह "श्रेयस्कारी है। भावना उच्च होनेसे परिणाम लाभप्रद ही होता है।
भावना उच्च कार्यकी प्रेरणा होती है अतः निरंतर उच्च भावना रखना चाहिये । उच्च भावना से ही उचित अनुष्ठान श्रेयस्कारी है | F इयमेव प्रधान' निःश्रेय- ref
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३. साङ्गमिति ||२८|| (१९५)7 मूलार्थ - भावना ही मोक्षका प्रधान कारण है ॥२८॥ |
विवेचन-भावना, अर्थात् उच्च, विचार, वही वास्तवमे मोक्षका मुख्य कारण है। ईप "मन एव मनुष्याणां कारण - मोक्षयोः ॥
— मन ही मनुष्यों के संघ और मोक्षका कारण है । अतः उच्च
विचार व शुभ भावना ही मोक्षका हेतु है
एतत्स्थैर्याद्धि कुशलस्थैर्यो पत्तेरिति ॥२९॥ (३९६)
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~+मूलार्थ - भावनाकी स्थिरतासे सर्व कुशल आचरणोंकी स्थिरता होती है ॥ २९ ॥
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