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धर्मफल देशना विधि : ४२१ तदभावे वाह्यादल्पवन्धभावादिति॥३२॥(४७४)
मूलार्थ-अशुभ परिणामका अभाव होने पर तो वाह्य (अशुभ कार्य)से अल्प बंध होता है ॥३१॥
विवेचन-तदभावे-अशुभ परिणामके अमावसे, वाह्यात्जीवहिंसा आदि बाह्य अशुभ कार्योसे, अल्पबन्धमावाद-तुच्छ बंधकी उत्पत्ति होती है।
यदि अशुभ परिणाम न हो और वाय कोई अशुभ कार्य जैसे जीवहिंसादि हो जाय तो उससे बहुत अल्प कर्मवन्ध होता है। भाव ही मुख्य है. कर्म गौण है। - वचनप्रामाण्यादिति ॥३२॥ (४७६)
मूलार्थ-आगमके वचन प्रमाणसे ॥३२॥ विवेचन-वचनस्य-आगमका, प्रामाण्यात्-प्रमाणभावसे ।
तीर्थकर प्ररूपित आगमके प्रमाणसे कहते हैं कि अशुभ परिणाम ही बंधका मुख्य कारण है। और अशुभ परिणाम विना वाह अशुभ आचरणसे अल्प कर्मबन्ध होता है । बायोपमर्देऽप्यसंज्ञिषु तथाश्रुतेरिति ॥३३॥ (१७६)
मूलार्थ-बाह्य हिंसा होने पर भी असंज्ञी जीवोंके लिये शास्त्रमें वैसा ही कहा है ॥३३||
विवेचन-बाह्य-शरीर मात्रसे की हुई हिंसा, केवल शरीरसे बहुत जीवों की हिंसा करने पर भी, असंज्ञिपु-समूर्छिम ऐसे महा