Book Title: Dharmbindu
Author(s): Haribhadrasuri, Hirachand Jain
Publisher: Hindi Jain Sahitya Pracharak Mandal

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Page 489
________________ धर्मफल विशेष देशना विधि : ४५३ । गतः उन जीवोंको जन्म आदि ग्रहण करने का कोई कारण नहीं है | कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म व कारण विशेषके न रहने पर जन्म ग्रहण नहीं हो सकता । जो जीव सव कर्मोंसे सर्वथा मुक्त है उसे जन्मादि लेनेका कोई निमित्त नहीं । सब प्रयोजनकी समाप्ति हो जानेसे जन्मादि ग्रहण करानेवाले स्वभावका अभाव है । किसीने जो तीर्थंके उच्छेद करने के लक्षणवाले कारणकी कल्पना की है वह हेतु भी योग्य नहीं । वह तो कषाय हेतुसे पैदा होता है और मोक्षगामी जीवको तीर्थ के प्रति राग या उसके उच्छेदके प्रति कोई द्वेष नहीं है । वीतराग मोक्षगामीको यह नहीं होता । नाजन्मनो जरेति ||३५|| (५१६) मूलार्थ - जिसे जन्म नहीं उसे जरा नहीं ||३५|| विवेचन - जिस जीव की उत्पत्ति ही नहीं होती, जो अजन्मा हैं उसे जरा या वृद्धावस्था नहीं होती । एवं च न मरणभयशक्तिरिति ||३६|| (५१७) मूलार्थ - और मृत्युका भय भी नहीं रहता || ३६ || विवेचन - जब तक जन्म होता है तभी तक जरा होती है और मृत्यु होती है अत. जन्मवालेको हो मृत्युका भय होता है । जब जन्म ही नहीं तो मृयु तथा मृत्युका भय क्या' । तथा - न चान्य उपद्रव इति ||३७|| (५१८) मूलार्थ - और सिद्ध जीवको अन्य उपद्रव भी नहीं होता ॥ ३७॥ विवेचन - भूख, प्यास, रोग आदि अन्य उपद्रव जो संसारीको

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