Book Title: Dharmbindu
Author(s): Haribhadrasuri, Hirachand Jain
Publisher: Hindi Jain Sahitya Pracharak Mandal

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Page 493
________________ धर्मफल विशेष देशना विधि : ४५७ विवेचन - सब कार्यों में उत्सुकता या चपलताको छोडकर प्रवृत्ति करने से स्वस्थता प्रगट होती है । तृष्णा या उत्सुकतासे चिचकी स्वस्थता नष्ट हो जाती है । कर्मफल की आशा रखे विना निष्काम प्रवृत्ति ही स्वस्थता देती है । परमस्वास्थ्यहेतुत्वात् परमार्थतः स्वास्थ्यमेवेति ||१८|| (५२९) मूलार्थ - उत्कृष्ट स्वस्थताका कारण होनेसे उत्सुकता रहित प्रवृत्ति ही स्वस्थता है ॥४८॥ विवेचन - परमस्वास्थ्य हेतुत्वात् - चिचके उद्वेगको छोडकर उत्कृष्ट स्वभावमें, अपने स्वरूपमें रहनेके कारणसे, परमार्थतः - तत्त्ववृत्तिसे, स्वास्थ्यमेव - (निरुत्सुक प्रवृत्ति ही ) स्वस्थता है । जो लोग उत्सुकता रहित प्रवृत्ति करते हैं वे परम स्वस्थता पाते हैं । अतः निरुत्सुक प्रवृत्ति ही परम स्वस्थता है । वह निरुत्सुक प्रवृत्ति केवलज्ञानी भगवानकी है। केवली भगवानको किसी जगह उत्सुकता नहीं है। संसार व मोक्षमें एकांत निस्पृह ऐसे केवली भगवान के योग्य प्रवृत्ति और अयोग्यसे निवृत्ति कैसे होती है ? उत्तर में करते हैं किवह केवल द्रव्यसे होती है । वह जैसे कुम्हारका चक्र गति देनेके बाद बिना चलाये भी कुछ समय अपने आप घूमता है वैसे ही पूर्व संस्कार वश केवलीकी भी प्रवृत्ति निवृत्ति होती है, वे भावसे प्रवृत्ति निवृत्ति नहीं करते । 7 भावसारे हि प्रवृत्यप्रवृत्ती सर्वत्र प्रधानो व्यवहार इति ॥ ४९ ॥ ( ५३० )

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