________________
धर्मफल विशेष देशना विधि : ४४५ विवेचन-पूजया-तीर्थकरके जन्म कालसे लेकर निर्वाणकी प्राप्ति तक उस उस प्रकारके निमित्तसे मेरु पर्वतके शिखर पर स्नान
आदि द्वारा पूजाके रूपमें जो अनुग्रह-मोक्षणी प्राप्तिरूप तीन जगत् पर जो उपकार होता है उसकी अंगता-कारणभाव ।
जबसे प्रभुका जन्म होता है तबसे लेकर निर्वाणप्राप्ति तक (तथा बादमें भी) भिन्न भिन्न समयों पर देवेन्द्र, देव, राजाओ तथा सामान्य मनुष्योंद्वारा प्रभुकी पूजा की जाती है। इस प्रकार प्रभु समझ कर ये लोग जो सेवा करते हैं उससे उनको सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होती है जो मोक्षकी प्राप्तिका कारण बनता है । इस प्रकार तीर्थकर तीनो जगत्का उपकार करते है। भगवानको देखकर मोक्षकी प्राप्तिकी इच्छावाले और उनकी भक्तिके समूहसे भरी हुई इंद्रादि देवो द्वारा की हुई पूजासे बहुतसे भव्य प्राणियोंको मोक्षको देनेवाला सम्यक्त्व आदि महान गुणका लाभ होकर महान उपकार होता है ।
तथा प्रातिहार्योपयोग इति ॥१७॥ (४९८) मूलार्थ-और आठ प्रातिहार्योंका उपयोग होता है ।।१७॥
विवेचन-धर्मके उत्कृष्ट फल तरीके तीर्थंकरको आठ प्रातिहार्य मिलते हैं। सभा या घरके बाहर जो द्वारपाल रहता है उसे प्रतीहारी कहते हैं । भगवान जहां भी जाते है वहां उनके साथ निम्न आठ प्रातिहार्य जाते हैं"अशोकवृक्षा सुरपुष्पवृष्टिः, दिव्यो ध्वनिश्चामरमासनं च । भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं,सत्प्रातिहार्याणि जनेश्वराणाम्।।२१५॥"
-१ अशोकवृक्ष, २ देवोद्वारा की हुई पुष्पवृष्टि, ३ दिव्य