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धर्मफल विशेष देशना विधि : ४३९ हिस्सेके समान भी नहीं है। ___ इस चरमदेहवाले पुरुषको जो वस्तुएं प्राप्त होती हैं उनका उपरोक्त तीन सूत्रोंमें विवेचन किया गया है-३(४८४) से ५ (१८६) में, अक्लिष्टमनुत्तरं विषयसौख्यं-से लेकर परमसुखलाभ:-तककी १७ वस्तुएं चरमदेहीको मिलती है और इस सूत्रकी पांचों वस्तुएं अपूर्वकरण गुणस्थानक मिलनेसे लेकर प्रारंभ होती हैं और मोक्षसुखकी प्राप्ति संतमे उसे मिलती है। वहां वह जीव शाश्वत (सदा स्थिर रहनेवाला) आनंद पाता है।
सदारोग्याप्तेरिति ॥६॥ (१८७) मूलार्थ-निरंतर आरोग्य रहता है ॥६॥
विवेचन-मोक्ष मिलनेके साथ मोक्षमें परम आनंद मिलता है उसका कारण बताते हुए कहते हैं कि वहा हमेशां सतत आरोग्य अवस्था, भाव आरोग्य अवस्था हो रहती है।
भावसंनिपातक्षयादिति ॥७॥ (४८८) मूलार्थ-भाव संनिपातका क्षय हो जानेसे ॥७॥ 'विवेचन-भाव आरोग्यके मिलनेका कारण यह है कि भाव संनिपात नामक रोग विशेष, हृदयके रोग तथा मनके विकार आदि सबका नाश हो जाता है। मनके दुर्जय विकार तथा वासनाएं भावरोग हैं उसके नाशसे आमाकी स्वाभाविक स्थिति प्रगट होती है, केवलज्ञान प्राप्ति होती है । भावसंनिपातका रूप बताते हैं