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४०८ : धर्मविन्दु चारेण आख्यायिकापुरुषयुक्ते अनेकमनोरथापूरकमयन्तनिरवयं जन्मेति
॥९॥ (४५२) मूलार्थ-और देवलोकसे च्यवन होनेके बाद भी अच्छे देशमें, अच्छे कालमें, प्रसिद्ध महाकुलमें, वंश कलंकरहित, सदाचारसे बडा, और जिसके बारेमें कथा-वार्ता लिखी जावे ऐसे पुरुपयुक्त महाकुलमें, अनेक मनोरथोंको पूर्ण करनेवाला ऐसा-अत्यन्त दोप रहित जन्म होता है ।।९।।
विवेचन- तच्च्युतावपि- देवलोकसे नीचे उतरने पर, विशिष्टे देशे:- मगध आदिमें, विशिष्ट एव काले- सुखमदु खम भादि, निष्कलङ्के- असदाचार रूपी फलंक मलसे रहित, अन्वयेनपिता, दादा आदि पुरुष परंपरासे, उदने- उत्तम, सदाचारेण-देव, गुरु, स्वजन आदिकी उचित सेवारूप सदाचार, आख्यायिकापुरुपयुक्त- जिन पुरुषोंने उस प्रकारके असाधारण मुणोंके आचरणसे ऐसे पराक्रम किये हो जिनके नाम चरित्रोंमें आये हो ऐसे पुरुषों सहित, अनेकमनोरथापूरक- स्वजन, परजन, परिवार आदिकी मनोकामनाकी पूर्ति करनेवाला, अत्यन्तनिरवयं--शुभ लग्न व शुभ ग्रह आदिमें विशिष्ट गुण सहित और एकात सब दोषोसे रहित समयमें, जन्म- उनका जन्म होता है।
जब वह धर्मिष्ठ पुरुष देवलोकमें अपना यु पूर्ण कर लेता है तो वहांसे च्यव कर इस संसारमें जन्म लेता है, तब वह उत्तम देशमें, शुभ कालमें, निष्कलक ऐसे उत्तम व प्रसिद्ध महाकुलमें जन्म