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धर्मफल देशना विधि : ३१५ मूलार्थ-परंतु गति और शरीर आदि पूर्वकी अपेक्षा हीन होती है ॥१९॥
' विवेचन-गति-देशांतर जानेकी गति, शरीरं-देह, परिवार तथा प्रवीचार आदि समझना-उन सबकी कमी या हीनता-उत्तरोतर देवस्थानमें पहले पहले की अपेक्षा गति, शरीर आदि शास्त्रमें कम कम बताये हैं।
जैसे जैसे ऊपरके देवलोक व विमानमें जाते हैं गति कम होती है तथा शरीर, परिवार तथा प्रवीचार आदि वस्तुएं बेटी, कम व हीन होती है। . . . .
तथा-रहितमौत्सुक्यदुःखेनेति॥२०॥ (४६३) मूलार्थ-और उत्सुकता दुःखसे रहित होता है ॥२०॥ विवेचन-रहित-मन, वचन व कायाकी त्वरारूप कष्टसे रहित।
जो लोग देवलोकमें जन्म लेते है उन्हें उत्सुकता नहीं होती। मन, वचन व कायाकी उतावल - या तेजीसे सामान्यतया मनुष्यको जो कष्ट होता है वे उससे रहित होते है या तो अपने कार्यके परिणामकी उत्सुकता भी नहीं होती। . . .
अतिविशिष्टाहादादिमदिति ॥२१॥ (४६४)
मलार्थ-और · वह जन्म अतिशय आहादसे युक्त होता है ॥२१॥ . :
विवेचन-अतिविशिष्ट-बहुत उत्कृष्ट, आह्लादादय:-आनंद कुशलानुबन्ध और महाकल्याणके समय पूजा करना आदि सुकृत युक्त।