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४१६ : धर्मविन्दु
और जिस देवलोक मे उत्पन्न होता हैं वहां उसे उच्च प्रकारका आह्लाद व आनंद होता है, वहां कुशल कार्यमें प्रवृत्ति होती हैं और तीर्थंकर की पूजा आदिमें निरंतर तत्पर रहते है ।
ततः तच्च्युतावपि विशिष्टदेश इत्यादि समानं पूर्वेणेति ||२२|| (४६५)
भ्रूलार्थ - वहां से च्यवन होने पर अच्छे देश आदि मैं जन्म ( पहले की तरह) होता है । २२ ॥
विवेचन - पूर्वेण -- इस ग्रन्थमें पहले कहे अनुसार 'विशिष्टे देशे' आदिमें जन्म होता हैं ।
विशिष्टतरं तु सर्वमिति ||२३|| (४६६), मूलार्थ - पूर्वोक्त से इस जन्म में सच विशिष्ट प्रकारका होता है ॥२३॥
विवेचन-- पहले जो सुंदर रूप व निर्दोष जन्म कहा था जो ( ४५२ व ४५३ ) में कहा है, उससे ज्यादा सुंदर रूप और निर्दोष जन्म समझना यह सब अधिक अच्छा मिलता है । विशेष उत्तमं 1 प्रकार के ये सब किससे मिलते हैं इसका उत्तर देते है -
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क्लिष्टकर्मविगमादिति ॥२४॥ (४६७) सूलार्थ - अशुभ कर्मका नाश होने से ||२४|| विवेचन-क्लिष्ट कर्म-दुर्गति, दुर्भाग्य और चुरा कुल ऐसे वेदनीय व अशुभ कर्म ।