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धर्मफल देशना विधि : ४११
ले जावे उनसे, योगः- संबंध, सत्कथाश्रवणं- संत जन, सदाचारी गृहस्थ व यतियों की कथाओ व चरित्रोको सुनना, मार्गानुगो बोधः- मुक्ति पथको ले जानेवाले रास्तेको समझना, सर्व वस्तुका यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना । सर्वोचितप्राप्ति - धर्म, अर्थ, काम आदि सब वस्तुओं में उचित व योग्य वस्तुकी प्राप्ति- इसके चार विशेषण यह इस तरह चार प्रकारकी है, हिताय सवसंघातस्यप्राणी मात्र के हित व कल्याणको करनेवाली, परितोषकारी गुरूणांमाता, पिता आदि लोगोंको सतोष व प्रमोद देनेवाली, संवर्द्धनी गुणान्तरस्य - अपने व दूसरोके अन्य गुणों को बढानेवाली, निदर्शनं जनानां - उस प्रकार के सुंदर आचरण में शिष्ट लोगो के लिये दृष्टातरूप, अत्युदार - तीव्र उदारतावाला, आशयः- मनका परिणाम, असाधारण विषया:- सामान्य लोगों से भिन्न- शालिभद्र आदिकी तरह शब्द आदि विषय, रहिता संक्लेशेन अध्यन्त आसक्ति रहित, अपरोपतापिन:- दूसरेको कष्ट न देनेवाला, अमङ्गुलाबसाना - पथ्य वस्तुके खानेकी तरह सुंदर परिणामवाले असाधारण विषयोकी प्राप्ति ।
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जब धर्मी जीव देवगतिमेंसे च्युत होकर मनुष्य जन्ममे आवे . तब उत्तम कुल, नीरोग शरीर आदि उपरोक्त वस्तुए मिलती हैं साथ ही वह स्वयं गुणानुरागी होता है । कैसे गुणो, पर उसे, पक्षपात होता है व कैसे गुणों पर उसे अनुराग होता है वह कहते हैं
'असन्तो नाभ्यर्थ्याः सुहृदपि न याच्यस्तनुधनः, प्रिया वृत्तिन्यय्या मलिनमसुभङ्गेऽप्यसुकरम् ।