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यतिधर्म विशेष देशना विधि : ३७१
विवेचन- एतस्य - भावनां के, कुशलाना - सच कल्याणकारी
चरणोंकी ।
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यदि भावना उच्च हो तो विचार, कार्य व वचन - सब उच्च
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होंगे । अतः भावना पर सब कार्यों का आधार है । अत' जब भावना स्थिर रहती है तब सब कुशल व कल्याणकारी आचरण भी स्थिर-1
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ताको प्राप्त होते है अतः वे निश्चितरूपसे किये जा सकते है । इससे ही मोक्षका प्रधान कारण शुद्ध भावना है। यह कैसे ? कहते है - भावानुगतस्य ज्ञानस्य तत्त्वतो 'ज्ञानत्वादिति ॥ १०॥ ३९७)
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मूलार्थ भावना के अनुसार ज्ञान ही वस्तुतः ज्ञान है ॥ ३ ॥
विवेचन - ज्ञानके तीन भेद हैं- श्रुतज्ञान, चिन्ताज्ञान, भावनाज्ञान । इनके लक्षण ये हैं |
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Sr "वाक्यार्थमात्रविषय, कोष्ठकगतवीजसंनिभ ज्ञानम् । श्रुतमयमिह विज्ञेयं मिथ्याभिनिवेशरहितमलम् ॥ १९९ ॥ यत्तु महावाक्यार्थजमति सूक्ष्मसुंयुक्तिचिन्तयोपेतम् । १. उदक इव तैलबिन्दुर्विसपि - चिन्तामयं तत् स्यात् ॥ २००॥ “दम्पर्यगतं यद् विध्यादौ यत्नवत् तथैवोचः । पतत् तु भावनामयमशुद्धसद्रत्नदीप्तिसमम् ॥२०१॥
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- वाक्यके अर्थ मात्रको बतानेवाला, मिथ्या "आग्रह रहित, भंडारमें रहे हुए अनके बीजके सदृशं श्रुतज्ञान है । सर्व धर्मात्मक वस्तुको प्रतिपादन करनेवाला, अनेकांतवाद विषयवाला, अति सूक्ष्म बुद्धिसे जानने लायक, सुयुक्तिद्वारा सोना हुआ, जलमै तेल विन्दुकी