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३८० : धर्सदिन्दु की भक्ति है। भक्तिके लिये उनकी आनाका पालन आवश्यक है अतः आराधनासे उनकी भक्ति होती है। “उपदेशपालनैव भगवद्भक्तिः, नान्या,
कृतकृत्यत्वादिति ॥४५॥ (४१२) “मूलाथ-भगवानके उपदेशका पालन करना ही भगवानकी भक्ति है ॥४५॥
विवचन-भगवानकी भक्ति करनेका एक ही मार्ग है वह उनका उपदेशपालन । जो भगवानकी आज्ञाके अनुसार कार्य करता है वही वस्तुतः भगवानका भक्त है यह निश्चित है । भगवान तो अपने करनेयोग्य सब कुछ कर चुके व मोक्ष सिधार गये हैं वे कृतकृय है । प्रभु कृतकृत्य है तो पुष्पादिसे पूजा करनेका क्या प्रयोजन ? कहते हैंउचितद्रव्यस्तवस्यापि तद्रूपत्वादिति ॥४६॥(४१३)
मूलार्थ-उचित द्रव्यस्तव भी उपदेशपालनरूप है अतः वह भी भक्ति है ॥४६॥
'विवेचन-पुष्पादि पूजा द्रव्यस्तुति है । द्रव्यस्तुतिसे भी भगवानकी आज्ञाका पालन होता । कहा है
"काले सुइभूपणं, विसिहपुप्फाइएहि विहिणाउ।
सारयुइथोत्तगरई, जिणपूजा होई कार्यव्वा ॥३०२|| • 'योग्य अवसर पर पवित्र होकर अच्छे पुष्पदिस तथा विधिसहित स्तुति व स्तोत्र आदि द्वारा महान जिनपूजा करना योग्य है।