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यतिधर्म विशेष देशना विधि :.३९७ अव इस प्रकरणको समाप्त करते हुए कहते हैंएवंविधयतेः प्रायो, भावशुद्धेर्महात्मनः । विनिवृत्ताग्रहस्योचैः, मोक्षतुल्यो भवोऽपि हि ॥३४॥
मूलार्थ-दुराग्रह रहित इस प्रकार भावशुद्धिवाले उचित अनुष्ठानवाले महात्मा भाव यतिके लिये प्रायः यह संसार ही मोक्ष समान हैं॥३४॥
- विवेचन-एवंविधस्य-अपनी स्थितिके अनुकूल उचित अनुष्ठान प्रारंभ करनेवाले, यते-साधु, प्राय -अक्सर, - विनिवृत्ताग्रहस्स-शरीर आदि संबंधी मूर्छादोष जिसका नाश हो गया है, उच्चै • बहुत-अति, मोक्षतुल्य -संसार भी मोक्षके बराबर है।
"जो अपनी अवस्थाके अनुकूल उचित अनुष्ठान करनेमें तत्पर है, भावशुद्धिवाला है, शरीर आदि पर जिसकी मूछाका नाश हो गया है ऐसे भाव यतिको संसार भी मोक्षके समान है। यद्यपि वह संसारमें रहे तब भी मोक्षसुख ही भोगता है। कहा है कि"निर्जितमदमदनानां पाक्कायमनोविकाररहितानाम् । विनिवृत्तपराशनामिहेव मोक्षः सुविहितानाम् ॥११॥"
---जिसने अहंकार व कामदेवको जीत लिया है, जो मन, वचन, कायाके विकारोसे रहित है, जिसने दूसरी (पुद्गल भावकी इच्छा) आशाको छोड़ दिया है ऐसे सुविहित साधुको यह संसार भी मोक्ष है। संसार भी मोक्ष कैसे है ? सो बताते हैं