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४०० :धर्मविन्दु देवलोकोंके देवताओंसे अधिक सुख पाता है। नौ मासवाला महाशुक्र और सहस्रार देवलोकके देवताओंसे अधिक सुख पाता है। दस मास पर्यायवाला निर्ग्रन्थ मुनि आनत, प्राणत, आरण और मच्युत-चारों देवलोकके देवताओसे अधिक सुख प्राप्त करता है। ग्यारह मास पर्यायवाला अत्रेयक देवताओसे अधिक सुख प्राप्त करता है । उसके बाद शुक्ल और शुक्लाभिजात्य होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, निर्वाण प्राप्त करते हैं और सब दुःखोंका अंत करते हैं । (अर्थात् अणिमादि ऐश्वर्य, केवली, भवोपग्रही कर्मसे मुक्त और सर्वथा कर्म रहित होकर सर्व दुःखोंका अंत करते हैं)॥
, मुनिचन्द्रपरि विरचित धर्मविन्दुकी टीकामें ' यतिधर्म विषय विधि नामक छट्ठा
अध्याय समाप्त हुआ।