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यतिधर्म विशेप देशना विधि : ३७७ मूलार्थ-भावनाज्ञान द्वारा स्वभावतः उपरामसिद्धि (दोपोंसे निवृत्ति) होती है।॥३८॥
विवेचन-तद्भावे-भावनाके होनेसे, निसर्गत एव-स्वभावसे - ही, दोषाणां-रागादि दोपोंका, उपरतिसिद्धेः-निवृत्तिका सिद्ध होना-दोषोंका टल जाना।
- जब-भावना हृदयमें रही हुई हो तब स्वभावसे ही राग आदि "दोष हट जाते हैं। उनसे निवृत्ति होती है अथवा तो भावनाज्ञानसे
ही सब प्रकारके मनोविकार-तथा वृत्तिये हट जाती हैं-मिट जाती है। भावनाके होनेसे स्वभावसे ही रागादि-दोष नष्ट हो जाते हैं । भावनाकी उत्पत्ति व कारण बताते हैं
वचनोपयोगपूर्वा विहितप्रवृत्ति'योनिरस्या 'इति ॥३९॥ (४०६) मूलार्थ-वचन के उपयोग सहित शास्त्र में कहे हुए अनुठानकी प्रवृत्ति भावनाका कारण है ॥३९॥
विवेचन-वचनोपयोगः-शास्त्रमें इस इस प्रकार कहा है “ऐसा सोच कर. योनिः-उत्पत्ति स्थान ।
भावनाज्ञानको उत्पत्ति शास्त्रोक्त प्रवृत्तिमें हैं। शास्त्रके वचनको भली प्रकार सोचना व समझना तथा उसकी आलोचना सहित "किसी कार्यमें प्रवृत्ति, करना वह भावनाज्ञानका उत्पत्ति स्थान है। शास्त्रद्वारा कथित अनुष्टानोंमें उपयोगसहित की हुई प्रवृत्ति भावनाज्ञानको पैदा करती है। वचनोपयोग सहित शास्त्रोक्त प्रवृत्ति भाव