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यतिधर्म विशेष देशना विधि : ३७५ जानी वस्तुको प्राप्त करके, विपर्ययायोगः-विपरीतताका योग नहीं होता-विपरीतमें प्रवृत्ति नहीं है तो। । - - हितमार्ग व अहित मार्गका भेद बतानेवाला ही भावनाज्ञान
है। भावनाज्ञान द्वारा देखे हुए तथा जाने हुए पदार्थोंके बारेमें विपरीत प्रवृत्तिका संभव नहीं है । विना मतिविभ्रमके हितमें अप्रधृत्ति तथा अहितमे प्रवृत्ति नहीं होती । यह विपरीतता भावनाज्ञानमें होती ही नहीं । यह कैसे सिद्ध होता है ? कहते हैं.. तद्वन्तो हि दृष्टापाययोगेऽप्यदृष्टापायेभ्यो
निवर्तमाना दृश्यन्त एवान्य- रक्षादावितीति ॥३६॥(४०३)
मूलार्थ-भावनाज्ञानवाले पुरुष दृष्ट कष्टोंकी. (मरण आदि) प्राप्ति होने पर भी अदृष्ट (नरक) कष्टोंसे निवृत्ति पाकर अन्य जीवोंकी रक्षा प्रवृत्त होते हैं ॥३६॥
विवेचन-तद्वन्त:-भावनाज्ञानवाले, दृष्टापाययोगेपिप्रत्यक्ष दीखनेवाले मरण आदि कष्ट प्राप्त करने पर भी (उनके न पाने पर तो और भी -विशेषतः) अदृष्टापायेभ्या-नरक आदि गति देने वाले (हिंसा आदि कर्म), अन्यरक्षादौ-अपनेसे भिन्न दूसरे प्राणियोंकी रक्षा, मृत्युसे बचाना, उपकार करना तथा जैनमार्गकी श्रद्धा मादि आरोपण करनेमें-(तत्पर देखे जाते हैं)। .
जो भावनाज्ञानवाले पुरुष हैं वे मरण आदि कष्ट जो दीखते हैं उनको पाने पर नरक आदि कुगतिको ले जानेवाले हिंसा आदि