________________
यतिधर्म विशेष देशना विधि : ३६९/
-
हैं । मोक्षकी इच्छार होनेसे उसके लिये आवश्यक मार्ग रत्नत्रयके ब्याराधनका है अतः उसमें रुचि होने से मार्गका अनुसरण: प्राप्त होता है। सन्मार्ग पर चलने की रुचि कैसे होती है? कहते हैंश्रवणादौ प्रतिपत्तेरिति ॥२४॥ (३९१)-- मूलार्थ शास्त्र श्रवणसे (भूल):अंगीकार करनेसे: (मार्ग में रुचि होती है ) ||२४||
"
विवेचन - शास्त्रका श्रवण करनेसे स्वयं अथवा दूसरेकी प्रेरणासेअपनी मूल मैंने यह असुंदर कर्म किया है? ऐसा अंगीकार करनेसे --- मानने से मार्गानुसारिता आती है। मूल ज्ञात होनेसे हृदय - मन्थनः होकर सन्मार्ग खोजता है, इससे मार्ग में रुचि होती है।
असदाचारगर्हणादिति ॥२५॥ (३९२) मूलार्थ - असदाचारकी निन्दा करने से ॥२५॥ - विवेचन अघटितव युक्तमाचरणकी निन्दा करे व उचित प्रायश्चित्त करे, वह अपनी मूलके अंगीकार करना हुआ । प्रायश्चित्तः द्वारा निन्दा करें तब सन्मार्ग में रुचि होती है। इत्युचितानुष्ठानमेव सर्वत्र श्रेय इति||२६|| (३९३)===
मूलार्थ - अतः उचित-अनुष्ठान ही सब जगह श्रेयस्कर है। विवेचन - इति- इस ) प्रकार : अनुचित - अनुष्ठान में अवश्य ही मियायामहः है, मत सर्वत्र गृहस्थधर्म में तथाऽयतिधर्म में श्रेयःप्रशंसनीय, श्रेयस्कर । २४