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तृतीय अध्याय ।
प्रथम व द्वितीय अध्यायमें गृहस्थके सामान्य धर्मका तथा चाल जीवका धर्म की ओर आकर्पण कैसे करना इसका विवेचन है । अव जीव किस राह जाकर मोक्षका अधिकारी होता होगा यह बताते हैं
द्वितीय अध्यायकी व्याख्या हो चुकी, अत्र तृतीय अध्याय प्रारंभ करते हैं । उसका प्रथम सूत्र यह है
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सद्धर्मश्रवणादेवं, नरो विगतकल्मषः ।
ज्ञाततत्त्वो महासत्त्वः परं संवेगमागतः ॥१३॥
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मूलार्थ - सद्धर्म श्रवणसे जिसका पाप चला गया जिसने तच्च पा लिया है और जो महान पराक्रमवाला है ऐसा श्रोता पुरुष उत्कृष्ट संवेगको प्राप्त हुआ है ।
विवेचन- सद्धर्मश्रवणात् - पारमार्थिक सत्य धर्मके सुननेसे, एवं उक्त रीति से, नरः - श्रोता, विगतकल्मषः - पापरहित, ज्ञाततत्व:- जीव व पदार्थ तत्त्वका भेद पा गया है, जिसने शात्ररूपी - नेत्र-बल से जीवादि वस्तुवादको हाथमें रहे हुए बडे मोतीकी तरह