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१६२: धर्मबिन्दु
विवेचन-सवप्रतिपत्तिमद्-स्वशक्तिका विचार करके धसकी शुद्धि प्राप्त करनेसे, विमलभावकरणं-अपने फलके उत्कृष्ट साधनसे सफल परिणाम उत्पन्न करनेवाला। ___ऊपर कहे हुए धर्मको सत्प्रतिपत्तिसे-अपनी शक्तिका विचार करके शुद्ध परिणामसे अंगीकार करनेसे वह विमल भावनाको पैदा करता है । यदि अपनी शक्तिका दृढ विचार करके धर्मको ग्रहण करें तो उसका उत्कृष्ट फल अवश्य मिलता है, जिनसे निर्मल भाव पैदा होता है । अतः विधिपूर्वक धर्म ग्रहण करनेका वर्णन करते हैंतच्च प्रायो जिनवचनतो विधिनेति ॥३॥ (१३६)
मूलार्थ-प्रायः वह धर्मग्रहण वीतरागके सिद्धांतके अनुसार निम्न विधिसे होता है ॥३॥
विवेचन-तच-वह सत्प्रतिपत्ति सहित धर्मग्रहण, प्राय:ज्यादातर, जिनवचनता-श्रीवीतराग प्रभुके, सिद्धांतसे, विधिनाकही जानेवाली।
प्रायः इस विधिसे वीतरागके सिद्धांतके अनुसार धर्मग्रहण करनेसे विमलभाव पैदा होता है। कभी कभी मरुदेवी आदिको जैसे बिना धर्म ग्रहणके भी विमलभाव पैदा होता है, इस विधिसे सत्प्रतिपत्तिवाला धर्म ग्रहण किया जाता है।
इति प्रदानफलवत्तेति ॥४॥ (१३७) मूलार्थ-इस प्रकार धर्मका दान मफल होता है ॥४॥