________________
३४२॥ धर्मविन्दु चारित्र चिंतामणिनी रक्षण करनी चाहिये। प्रतिक्षण इसकी संभाल रखनी चाहिये।
तथा- 'आरम्भयांग इति ॥९॥ (२७८) मूलार्थ-और आरंभका त्याग करे॥९॥ 'विवेचन-जिन कार्योंसे छकायकी विराधना हो उतनी त्याग करें। ऐसे सब कार्य जिनसे छकायमसे किसी भी कार्यक जीवकी विरीधना हो वे सब कार्य त्याज्य हैं। यति उनको न करें। उस (आरंभ त्याग)का उपाय कहते है ।
पृथिव्याधसंघट्टनमिति ॥१०॥ (२७९) मलाथ-पृथ्वीकाय आदिको स्पर्श न करे॥१०॥ 'विवेचन-असंघटन-स्पर्शका न करना जिससे जीवोंको परि. ताप या कष्ट कम या अधिक हो, उनको फैंकना आदिका त्याग करना।
"पृथ्वी काय आदि जीवोंकी स्पर्श न करें। इन छ काये जीवामसे किसीका स्पर्श या विरीधना न करे। संक्षेपमै छ काय जीवों की रक्षा करें।
तथा- त्रिधाशुद्धिः ॥११॥ १२८०) भूलार्थ-तीन प्रकारकी ईयाँशुद्धि करना ॥११॥
विवेचन-विधा-ऊँचे नीचे या तिरछी-इन तीन दिशाओंकी अपेक्षासे तीन प्रकारकी, ईययाः शुद्धिः जाने आनेकी-गमनकी शुद्धि रखना । अर्थात् भलीभांति देखकर चलना।
तीनों दिशामिसे जीते अति 'दृष्टि डालते हुए "मली प्रकारसे चलें ताकि चलनमें किसी जीवको विराधना नहीं, कोई भी जीव पैर नीचे ने आवे । इस प्रकार ईयासमिति पाले।
1.