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३२० : धर्मबिन्दु
"पडए वाइए कीवे, कुंभी ईसालय त्ति य। सकणी तक्कम्मलेवी य, पक्खियापक्खिए इय" ॥१७॥ "सोगंधिए य आसत्ते, एए दस नपुंसगा। संकिलिट्ठ त्ति साहूणं, पव्वावेउं अकप्पिया" ॥१७८॥
-पंडक, वातिक, क्लीब, कुंभी, ईर्ष्यालु, शकुनि, तत्कर्मसेवी, पाक्षिकापाक्षिक, सौगंधिक और आसक्त-ये दस प्रकारके नपुंसक हैं। ये संक्लेशका कारण होनेसे दीक्षाके योग्य नहीं हैं--- . १. पंडक- जिसका आकार पुरुषका हो पर स्वभाव स्त्रीका हो । मदगति, शीतल शरीर, स्त्रीकी तरह केशवंधन करनेवाला, आभूषणोंकी अधिक इच्छा करनेवाला, पुरुषोंमें शंका व भय रखना, ये उसके लक्षण हैं। पुरुष चित बडा, वाणी स्त्रीके जैसी, स्वरमें भेद तथा रस, गंध, वर्ण, स्पर्श आदिमें स्त्रीसे विलक्षण हो। .
३ वातिक- पुरुषचिव स्तब्ध होने पर सीसेवा बिना वेदको धारण करनेमें असमर्थ हो।
४. क्लीव- स्त्रीको देख कर, शब्द सुन कर, आलिंगनसे-या निमन्त्रणसे जो क्षोभ पाता है वह क्लीब है।
५. कुंभी- जिसका पुरुषचिह्न कुभकी तरह स्तब्ध हो अथवा कुंभ जैसे स्तन हो वह कुभी कहलाता है।
५. ईर्ष्यालु- स्वयं स्त्रीका सेवन करनेमें असमर्थ होनेसे अन्य कोई स्त्रीका सेवन करे तो उस स्त्रीको देख कर ईर्ष्या करनेवाला ईर्ष्यालु है।