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यतिधर्म देशना विधि : ३२५
मुखकी शांति के लिये वैयावच (सेवा) करनेके लिये, ईर्यासमिति के गोधनके लिये, संयम धारण करनेके लिये, प्राण धारण करनेके लिये और धर्म चितवनके लिये अन्नका उपभोग करे या अन्न ग्रहण करे ।
तथा - विविक्तवसतिसेवेति ||४०|| (३०९) मूलार्थ - और एकांत स्थानमें निवास करना ||४०|| विवेचन - विविक्तायाः - स्त्री, पशु या नपुंसक जहां न रहते हों; वसते:- स्थानका, सेवा - उपयोग करना ।
ऐसे स्थान पर जहां स्त्री, पशु या नपुसक न रहते हों वहां - रहे । अर्थात् एकान्त स्थानमें वास करे । एकांत में न रहने से साधुको ब्रह्मचर्यभंगका प्रसंग उपस्थित हो सकता है । अर्थात् ब्रह्मचर्य पाल - नके लिये एकांत में रहे |
ब्रह्मचर्य पालन करने में बची हुई गुप्तियों के पालनके लिये अब कहते हैं
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तत्र स्त्रीकथा परिहार इति ॥ ४१ ॥ (३१०) मूलार्थ - उसमें स्त्रीकथाका त्याग करे ||४१ ॥ विवेचन - ब्रह्मचर्य पालनके लिये, शेष गुप्तियों के पालनके लिये जो आगे आठ सूत्र कहे जाते हैं उनमें पहला यह है । स्त्रीकथा चार प्रकारकी है - जाति, कुल, रूप व वस्त्र आदि वेषके बारेमें कथा । जैसे ब्राह्मण आदि जाति चौलुक्य आदि कुल, शरीरके आकार प्रकार तथा वेषभूषा के बारेमें बातें करना । स्त्रीकथा कामोद्दीपन करती है अतः -न सुने, न करे और न पढे । ब्रह्मचर्य के लिये यह आवश्यक है । जैसे