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३६६ : धर्मविन्दु होता है अतः ऐसे असद् आग्रहका त्याग करनेके हेतु सच्चा अनुष्ठान असत् आग्रहवाला न हो, कहा है मिथ्या आग्रहसे विवेक बुद्धि नष्ट हो जाती है अत उचित व अनुचितका भेद नहीं प्रतीत होता।
अनुचित अनुष्ठान भी मिथ्या आग्रह बिना संभव है-इस शंकाका उत्तर देते हैं
अनुचितप्रतिपत्ती नियमादसदभिनिवेशोऽन्यत्रानाभोगमात्रादिति ॥१८॥ (३८५)
मूलार्थ-अज्ञात अवस्था सिवाय अनुचित अनुष्ठानमें प्रवृत्ति हो वह निश्चित दुराग्रह है ।।१८॥
विवेचन-अनुचितप्रतिपत्ती- अनुचित अनुष्ठान अंगीकार करना, नियमात्- अवश्य, असदभिनिवेश- मिथ्या आग्रह रूप, अन्यत्र-विना, अनाभोगमात्रात्-आग्रह रहित अज्ञानताके कारण। ___ अनुचित अनुष्ठान अवश्य ही मिथ्या आग्रहरूप है। मिथ्या आग्रह ही अनुचित अनुष्ठानका कारण है पर अपवादस्वरूप मिथ्या आग्रह रहित केवल अज्ञानतासे किया हुआ अनुचित अनुष्ठान भी आग्रह नहीं है। अतः अज्ञानताको छोडकर अन्य सब अनुचित अनुष्ठानकी प्रवृत्ति मिथ्या आग्रह है।
वह दुराग्रह नहीं है, ऐसा करनेसे क्या सिद्ध हुआ ? कहते हैंसंभवति तद्वतोऽपि चारित्रमिति ॥१९॥ (३८६)
मूलार्थ-केवल अज्ञानतासे अनुचित प्रवृत्ति करनेवालेको भी चारित्र संभव है ॥१९॥ . .