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यतिधर्म देशना विधि : ३२९
उसे वशमें करना कठिन होता है । विभूपापरिवर्जनमिति ||१८|| (३१७) मूलार्थ - शृंगारका त्याग करे ||१८|
विवेचन - विभूषा अर्थात् शरीरका गंगार करनेवाले वेपको धारण न करे । शरीरकी शोभा बढानेके लिये किया हुआ वेग तथा ते, इत्र आदि लगाना भी कामोद्दीपक है और इन्द्रियों को विलासी बनाता है । अत साधु इसे त्यागे ।
स्त्रीयासे लेकर कहे हुए ये नौ सूत्र जिसमें ब्रह्मचर्यपालन संबंधी नौ नियम हैं. ब्रह्मचर्यपालन सहायक हैं । ये ब्रह्मचर्यकी नौ वाड या ब्रह्मचर्यको पालनेके लिये नौ दीवार हैं। माधु व ब्रह्मचारी इन नियमों का पालन करें। ये मोड़के उत्तेजनाके निमित्त हैं। अतः इनका निषेध किया है ।
तथा तत्त्वाभिनिवेश इति ||१९|| ( ३१८) मूलार्थ-तत्त्वके प्रति पूर्ण आदर रखे ||१९||
विवेचन - सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्रकी पुष्टि करनेवाली सब क्रियाओं में असमर्थ हो अथवा अगक्त हो उसके प्रति मनसे भाव रखे तथा उसे करनेकी इच्छा रखे ॥
तथा - युक्तोपधिधारणमिति ॥ ५० ॥ (३१९) मूलार्थ - और योग्य सामग्री रखे या धारण करे ॥५०॥ -विवेचन - शालक प्रमाणवाली, लोकापवाद रहित तथा स्वयं