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यतिधर्म देशना विधि : ३५१ ऊपर जो यतिधर्म कहा है उसे भली प्रकारसे जो महात्मा आराधता है उसे इस लोकमें कल्याणकी प्राप्ति होती है तथा परंपरासे मोक्षकी प्राप्ति होती है। इसका विवरण आगे करते हैंक्षीराश्रयादिलब्ध्योघमासाद्य परमाक्षयम् । कुर्वन्ति भव्यसत्त्वानामुपकारमनुत्तमम् ॥२९॥
मूलार्थ-वे महात्मा क्षीराश्रव आदि उत्तम तथा अक्षय लब्धि पाकर भव्य प्राणियों पर अति उत्तम उपकार करते हैं।
विवेचन-क्षीराश्रवादि- श्रोताजनोके कानोमे दूध, दही या अमृतके समान मधुर लगनेवाले वचन बोलनेरूप लब्धि, लब्ध्योपालब्धिसमूह, आसाद्य-प्राप्त करके, परम- सुन्दर, अक्षयम्- अनेक रीतिसे सहायता करने पर भी क्षय न होनेवाली, उपकारस्- सम्यक् ज्ञान, चारित्र आदि देनेका,, मव्यसत्त्वानां- भव्य प्राणियोंका, अनुत्तमम्-निर्वाण।
वे महात्मा क्षीराश्रव आदि महान् लब्धियोको प्राप्त करके भत्र्य प्राणियोंको सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदिकी प्राप्ति करानेका उपकार करते हैं तथा उनको निर्वाणरूपी उत्तम फल प्रदान करानेमें सहायक होते हैं। उन लब्धियोका उपयोग अपनी महत्ताके लिये नहीं पर अन्य जीवोंका उपकार करनेमें करते हैं। मुच्यन्ते चाशु संसारादत्यन्तमसमञ्जसात् । जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-रोग-शोकायुपद्रुतात् ॥३०॥
मूलार्थ-वे महापुरुष जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि, रोग,