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यतिधर्म विशेष देशना विधि : ३५५ विवेचन-यस्य- सापेक्ष व निरपेक्षसे जिसका आचरण कर सके, योग्य- समुचिन, आलोच्य- पूर्ण निपुणतासे ऊहापोहसे विचार करके (तर्क वितर्क सहित)। ___ ऊपर दोनों यतिधर्माका वर्णन किया है अतः उनमेंसे जिस मार्गका पालन साधु कर सके उसे तर्क वितर्क सहित पूर्णतया सोचकर जो उचित लगे उसे योग्य साधनों सहित प्रारंभ करे। जो योग्य हो वही आचरणीय है यही सत्पुरुषोका नीतिमार्ग है। इत्युक्तो यतिधर्मः, इदानीमस्य विषयविभाग
मनुवर्णयिष्याम इति ॥१॥ (३६८) ; 'मूलार्थ-इस प्रकार यतिधर्म कहा है । अब इसके विषय विभागोंका वर्णन करते हैंतत्र कल्याणाशयस्य श्रुतरत्नमहोदधेः उपशमादिलब्धिमतापरहितोद्यतस्य अत्यन्तगम्भीरचेतसा ' प्रधानपरिणतेर्विधूतमोहस्य परमसत्त्वार्थक ः - सामायिकवत: विशुद्धमानाशयस्य ' -यथोचितप्रवृत्तेः सात्मीभूतशुभ
योगस्य श्रेयान् सापेक्षयतिधर्म , . - . एवेति ॥२॥ (३६९) मूलार्थ-यतिधर्ममें शुभ आशयवाला, शास्त्ररत्नोंका समुद्र, उपशम आदि लब्धिप्राप्त, परहितमें तत्पर, अत्यंत गंभीर चित्तवाला, उत्तम परिणतिवाला, मोह (मूर्खता)को नाश ।