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३५४ : धर्मविन्दु प्रशंसनीय कहते हैं। वह सब क्लेशको नाश करनेवाले मोक्षकी प्राप्तिका कारण है । अतः इस साध्य वस्तुके साधनरूप आचरण निरपेक्ष व सापेक्ष यतिधर्म कहे हैं।
समया यत्र सामग्री, तदपेक्षेण सिद्धयति । दवीयसापि कालेन, वैकल्येतु न जातुचित् ।३२॥
मूलार्थ-जहां सब सामग्री होती है तो कार्य तत्काल सिद्ध होता है पर सामग्रीके अभावमें तो काफी समय जाने पर भी सिद्धि हो या न भी हो ॥३२॥
विवेचन-समग्रा-पूर्ण, सामग्री-सब संयोग पूरे हों,अपेक्षेणतुरंत, दवीयसाऽपि-बहुत समय बाद तथा दूर रहे हुए समयमें भी, वैकल्ये-सामग्रीकी कमीसे।
जिस कार्यमे सारी परिपूर्ण सामग्री हो, सब संयोग पूरे हो तो वह कार्य शीघ्र ही पूरा हो जाता है। अन्यथा सब सामग्रीके न होनेसे बहुत समय व्यतीत होने पर भी कुछ सामग्रीकी कमीसे वह काम कदाचित् हो या न हो। वह सामग्री क्या है ? व क्या कर्तव्य है सो कहते हैंतस्माद् यो यस्य योग्यास्यात्, तत्तेनालोच्य सर्वथा। भारब्धव्यमुपायेन, सम्यगेष सतां नयः॥३३॥
मूलार्थ-अतः जो जिसके योग्य हो, उसका, सापेक्ष या निरपेक्ष यतिधर्मका) पूर्णतया विचार करके उपाय सहित प्रारंभ करे। यही सत्पुरुषोंका न्याय्य मार्ग है।