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३५२ : धर्मबिन्दु
शोक आदि उपद्रवयुक्त तथा अत्यंत अयोग्य ऐसे इस संसारखे तुरत मुक्त करते हैं ||३०||
विवेचन - मुच्यन्ते - मुक्त करते हैं, आशु शीघ्र, संसाशत्-भवसे, संसार भ्रमणसे, अत्यन्तमसमञ्जसात् - अत्यन्त अयोग्य इस संसार के स्वरूपसे ।
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इस महान अयुक्त संसारसे तथा इसके अंदर रहे हुए कई उपद्रवोसे वे महात्मा शीघ्र ही मुक्त करते हैं - स्वयंको तथा अन्योंकोअर्थात् वे स्वयं शीघ्र मुक्तिलाभ करते हैं तथा अन्योको भी निर्वाण दिलानेमें सहायक होते हैं। इस संसारके जो कई उपद्रव हैं उन सबसे मुक्त होना ही मोक्ष है ||
श्रीमुनिचन्द्रसूरि विरचित धर्मविन्दुकी टीका में यतिविधि नामक पांचवा अध्याय
समाप्त हुआ ।