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३४६ : धर्मबिन्दु ____ बारहवें वर्षमें आयंबिल करते करते एक एक कंवल कम करे
और अंतमें सिर्फ एक कंवल बाकी रखे उसमें भी धीरे धीरे कम करके एक अंश ही रखे-जैसे दीपकमें तेल व लेह एक साथ खतम होता है वैसे ही शरीर व आयुष्यका एक साथ अंत आवे वह सुदर है । अंतिम चार मासमें हर तीसरे दिन तेलका कुल्ला भर कर मुहमें रखे और राखमें डाल दे फिर गरम पानीसे कुल्ले करे । ऐसा न करनेसे मुह बहुत लखा (स्निग्धता रहित) हो जाता है और नवकार मंत्रका भी उच्चार नहीं हो सकता। ___ जब किसी प्रकार शरीरके सामर्थ्य (संहनन)के कम होनेसे इतने समय संलेखना न हो सके तब कुछ वर्ष और मास कम करते अंतते. छ मासकी संलेखना करे । बारह वर्षके बजाय ११,१०,८; ६,५,४,३,२,१ वर्ष अथवा ११,१०,९,८,७ या ६ मासका कमसे कम व्रत करे। क्योंकि जो साधु शरीर व कषायोंको क्षीण न करे उसके अनशन लेनेसे शीघ्र धातुक्षय होनेसे समाधि मरण व सुगति नहीं हो सकती अत निकृष्टतम (कमसे कम) छ मास तो संलेखना करना ही चाहिये।
ततो विशुद्धं ब्रह्मचर्यमिति ॥८६॥ (३५४) मूलार्थ-फिर विशुद्ध ब्रह्मचर्यका पालन करे ॥८६॥
विवेचन-विशुद्ध-विशेषत. शुद्ध-अतिगहन रूपसे गुप्तिसहित ब्रह्मचर्यका शुद्धरूपसे पालन ।
- साधु ब्रह्मचर्यका पालन तो करता ही है पर संलेखना व्रतमें ब्रह्मचर्य पालन करनेका कहनेका तात्पर्य यह है कि शरीर शुष्क