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यतिधर्म देशना विधि : ३४७ हो जाने पर भी मैथुनकी अभिलाषा उत्पन्न हो सकती है। उस वेदनाके उदयको रोकना है जो वहुत कठिन है । संलेखना करते हुए शीघ्र मृत्यु उपजानेवाले विपविशूचिका आदि रोग हो जाने पर क्या करना चाहिये सो कहते हैं
विधिना देहत्याग इतीति ।।८७।। (३५५) मूलार्थ-विधिवत् देहका त्याग करे ॥८॥ . विवेचन-देहत्याग करते समय, मृत्युके उपस्थित होने पर आलोयणा करना, व्रतका उच्चार करना, अनशन करना, सर्व जीवको खमाना, प्रायश्चित्त करना, शुभ भावना रखना, पंच परमेष्ठित्मरण आदि विधिसे देहत्याग करे । पंडित मरणकी आराधना करे। इस प्रकार सापेक्ष यतिधर्म कहा। अव दूसरा निरपेक्ष यतिधर्मका वर्णन करते हैं
निरपेक्षयतिधर्मस्त्विति ॥८६॥ (३५६) मृलार्थ-निरपेक्ष यतिधर्म इस प्रकार है ॥४८॥
विवेचन-जो गुरुके कुलके साथ नहीं रहते ऐसे जिनकल्पी साधुका निरपेक्ष यतिधर्म कहते हैं।
वचनगुरुतेति ॥८९।। (३५७) मृलार्थ-आगमको गुरु माने ।।८।।
विवेचन-जैसे सापेक्ष यतिधर्म पालन करनेवाला सब बातोमें गुरुसे पूछ कर उसकी आज्ञाके अनुसार प्रवृत्ति व निवृत्ति करता है उसी प्रकार निरपेक्ष यतिधर्म पालन करनेवाला शास्त्रोक्त विधि