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३२६ : धर्म विन्दु
"धि ब्राह्मणीर्धवाभावे, या जीवन्ती मृता इव । धन्याशी जनैर्मान्या, पतिलक्षेऽप्यनिन्दिता ॥ १८०॥ "अहो ! चौलुक्यपुत्रीणां साहसं जगतोऽधिकम् । विशन्त्यग्नां मृते पत्यो, या प्रेमरहिता अपि ॥१८२॥ "अहो ! अन्ध्रपुरन्ध्रीणां रूपं जगति वर्ण्यते । यत्र यूनां शो लग्ना, न मन्यन्ते परिश्रमम् ॥ १८२ ॥ "धिग् नारोरौदीच्याः, बहुचस्त्राच्छादिताद्गलतिकत्वात् । यद्यौवनं च यूना, चक्षुमोदाय भवति सदा ॥ १८३॥ "
ब्राह्मण नारीको विकार है जो पतिके मृत्यु पर मृतवत् रहती है । धन्य है गूद्र नारीको जो कई पति होने पर भी लोगों में मान्य व अनिंदित रहती है । अहो ! चोलुक्य पुत्रियोका साहस सबसे अधिक हैं। प्रेम रहित होने पर भी वे पति के मरने पर अनिमे प्रवेश करती है | अहो | आन्ध्रदेशकी स्त्रियों का रूप जगत् में प्रसिद्ध है जहा सीके रूपको देखते हुए नेत्र कभी थकते ही नहीं | औदीच्य नारी या उत्तरीय नारीको धिक्कार है जो अपने लता समान अंगोंको बहुत वस्त्रोंसे आच्छादित कर लेती है जिससे उनका यौवन युवानोंके देखनेके उपयोग में नहीं आता। ऐसी स्त्रीकथाको त्याग करे, ऐसी पुस्तकें भी
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निषद्यानुपवेशनमिति ॥ ४२॥ (३११)
मूलार्थ - स्त्रीके आसन पर नहीं बैठना चाहिये ॥४२॥ विवेचन-स्त्रीके बैठनेके पट्ट आदि आसन पर ब्रह्मचारी स्त्रीके
“ऊठ जाने पर भी दो घडी ( ४८ मिनिट ) तक न बैठे । तत्काल