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यतिधर्म देशना विधि ः ३२३ करनेकी जो विधि है उस प्रकार नयालीस दोपरहित आहार ग्रहण करना चाहिये ।
तथा अन्ययोग्यस्य ग्रह इति ॥३४॥ (३०३)
मृलार्थ-अन्यके योग्य वस्तुको भी ग्रहण कर सकता है।॥३४॥
विवेचन-खुदको छोड कर गुरु अथवा ग्लान, बाल आदि साधुके योग्य जो वस्तु हो तो उसे अवश्यता होने पर ग्रहण किया जा सकता है । ऐसा ग्रहग करने पर क्या करे सो कहते हैं
गुरोनिवेदनमिति ॥३५॥ (३०४) मूलार्थ-गुरुसे निवेदन करे ॥३५॥
विवेचन-उपाश्रय या रहनेके स्थानमे सौ हाथसे अधिक दूर जाने पर या जाकर वस्तु लाने पर पहले आने की ईर्यापतिकमण आदि आलोषणा करना । और तब गुरुपे निवेदन करना । सो हाथके भीतरसे लाने पा आलोयगा बिना ही गुरुने निवेदन करना । जिसके हाथसे जिस प्रकार वस्तु प्राम हो वह मब निवेदन करके वह गुरुको सौंपना चाहिये । यह कर लेनेसे---
स्वममदानमिति ॥३६॥ (३०५) मूलार्थ-स्वय दूसरेको (गुरु आज्ञा विना) न दे ॥३६॥
विवेचन-वह स्वयं लाने पर भी अपने आप दूसरोंको न दे क्योंकि वह गुरुको समर्पित की हुई है। अतः गुरु आज्ञा विना