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३१६ : धर्मविन्दु
- पिंड, शय्या, वस्त्र तथा पात्र - ये सव या जो कोई अकल्पित हो, साधुको न कल्पे ऐसे हों तो उसे ग्रहण न करे । और कल्पनीय हो, ग्रहण योग्य हो तो जितनी आवश्यकता हो उतना ही ( उचित मात्रामें ग्रहण करे ।
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श्रीवीतराग प्रभुके कथन के अनुसार अठारह प्रकारके पुरुष, वीस प्रकारकी स्त्रिय तथा दस प्रकारके नपुंसक दीक्षा के योग्य नहीं हैं। वे इस प्रकार है---
'वाले वुड्ढे नपुंसे य, कीवे जड़े य वाइए । तेणे रायावगाही य, उम्मत्ते य असणे ॥
दासे दुडेय सूढे य, अणत्ते जुंगिए इय । ओaar य भयो, सह निप्फेटिए इय" ॥१७६॥
---बालक, वृद्ध, नपुंसक, क्लीव, जड, रोगी, चोर, राजाका अपकार करनेवाला, उन्मत्त, अन्धा, दास, दुष्ट, मूढ, ऋणी जातिकर्म व शरीरसे अशुद्ध या दूषित, स्वार्थसे प्रेरित या बंधा हुआ, - द्रव्यसे रखा हुआ चाकर और माता पिता आदिकी आज्ञा बिना आनेवाला - यह अठारह प्रकारके पुरुष दीक्षा लेने योग्य नहीं है ।
सगर्भा तथा छोटे बच्चेवाली इन दो प्रकारकी उपरोक्त दोषोंबाली खियोंकि १८ प्रकारके साथ जोडने से २० प्रकारकी इन दोषों- वाली खिये दीक्षाके योग्य नहीं हैं।
इन सबके बारेमें कुछ विवेचन इधर-उधर से लेकर जोडा जाता है। ये निम्नोक्त लोग दीक्षाके योग्य नहीं हैं।