________________
यतिधर्म देशना विधि : ३१७ १. वाल-जन्मसे ८ वर्ष तक बालक रहता है, वह दीक्षा योग्य नहीं है । 'प्रवचनसारोद्धार के अनुसार दीक्षाकी जघन्य या लघुतम आयु ८ वर्ष कही है, इससे कम दीक्षाके योग्य नहीं । वह देशविरति या सर्वविरतिका अधिकारी नहीं । वज्रस्वामीने छमासकी आयुमें ही भावसे सर्व सावध विरतिका राग किया था। ऐसा अपवाद है उदाहरण नहीं माना जा सकता। चालक होनेसे पराभव भी होता है। संयमकी विराधना व लोकनिंदा होती है अतः बालकको दीक्षा न दे।
२. वृद्ध- सित्तर-७० वर्षसे अधिक वृद्ध कहलाता है। कोई ६० वर्षसे अधिकको भी वृद्ध कहते हैं। उस वयमें इंद्रिय हानि हो जाती है। १०० वर्षके आयुमें यह प्रमाण है। जब आयुमान कम हो, मनुष्यकी साधारण आयु कम या अधिक हो तो दस भागमेंसे ७ भाग तक ही दीक्षाके योग्य माना गया है। १० मेसे ८ वां या अधिक भागमें वृद्ध गिना जाता है।
३. नपुंसक- स्त्री व पुरुष दोनोंका अभिलापी, पुरुष आकृतिबाला अथवा दोनो लिंगो रहित व्यक्ति नपुंसक है।
४. क्लीच- दर्शन व श्रवणसे विकारको सहनेमें असमर्थ, नियोंद्वारा प्रार्थना किये जाने पर या अंगोपाग देख कर या ऐसी वार्ता सुनकर कामातुर होनेवाला क्लीव है। वह कभी बलात्कार भी करे अतः वह अयोग्य है।
५. जड- ये तीन प्रकारके हैं- भाषाजड, शरीरजड तथा करणजड । तुतलाना, हकलाना या अव्यक्त शब्द कहना तीनों भाषा