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यतिधर्म देशना विधि : ३०३
'तथा भिक्षाभोजनमिति ॥ १२ ॥ (२८१) मूलार्थ और भिक्षा मांगकर भोजन करना ||१२||
विवेचन - भिक्षा तीन प्रकारकी है - १ सर्वसंपत्करी, २ पौरुषघ्नी, और ६ वृत्तिभिक्षा । उनके लक्षण इस प्रकार हैं
"यतिर्ध्यानादियुक्तो यो, गुर्वाज्ञायां व्यवस्थितः । 'सदाऽनारम्भिणस्तस्य सर्वसंपत्कारी मंता ॥५६॥ "वृद्धाद्यर्थमसङ्गस्य, भ्रमरोपमयाऽटनः । गृहिदेहोपकाराय, विहितेति शुभाशयांत् ॥१५७॥ "प्रवज्यां प्रतिपन्नो, यस्तद्विरोधेन वर्तते । असदारम्भिणस्तस्य पौरुपनी प्रकीर्तिता ॥ १५८॥ "निःस्वान्धवो ये तु न शक्ता वै क्रियान्तरे । भिक्षामन्ति वृत्यर्थं वृत्तिभिक्षेयमुच्यते " ॥१५९॥
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— जो यति ध्यान आदि सहित, गुरुकी आज्ञामे रहनेवाला,
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निरंतर आरंभरहित, वृद्ध गुरु आदिके लिये भ्रमर की तरह अनासक्तिसे घूमनेवाला, जो भिक्षा गृहस्थ तथा देहके उपकार के लिये लाता है वह सर्वसंपत्करी भिक्षा होती है उसमें शुभ आशय रहा हुआ है।
जो पुरुष दीक्षा लेकर उसके विरुद्ध प्रवृत्ति करता है तथा असद् आरंभको करनेवाला है उसकी मिक्षा पौरुपनी कहलाती है । जो व्यक्ति निर्धन, अधे तथा लंगडे या लूके हैं और अन्य कोई क्रिया करनेमें असमर्थ हैं वे वृत्ति या आजीविका के लिये जो भिक्षाटन करते है, भीख मागते हैं वह वृत्तिभिक्षा कहलाती है ।