________________
यतिधर्म देशना विधि : ३०९
मूलार्थ और विधिवत् आचार आदिका पालन करे ॥६॥ विवेचन - शास्त्रोक द्विधिके अनुसार पटिलेहण, प्रमार्जन, गोचरीत्र बुक बाजार गली भातिम पालन करना चाहिये । शुद्ध मार्गी पालन करना ।
तथा - आत्मानुग्रह चिन्ननमिति ||७|| (२७६) मूलार्थ - अपने पर किये उपकारका चिंतन करना ||७|| विवेचन- गुरुद्वारा किये हुए उपकारीका विचार करना नाहिये। टीकाकार के अनुसार गुरुकी सारी आज्ञाएं अनुग्रह (उपकार) रूप में मानना चाहिये कहा है कि
"धन्यस्योपरि निपतत्यधितसमाचरणधर्मनिर्वापी । दलतो, वचनरसन्यनस्पर्श. " ॥ १५५ ॥
-अहित अनग्ण (अमगल कार्य ) गरमीको शांत करनेबालागुरके इसरूपी मल्यानटसे निकला हुआ वचनरल चंदनके स्पर्श समान है । यह भाग्यवान् पुरुषों पर ही पढता है । अतः गुरुके वचन अमगलकारी आचरोको मिटानेवाले हैं और भाग्यवान पुरुषों पर ही पटते है - इस प्रकार विचार करें।
तथा - व्रतपरिणामरक्षेति ||८|| (२७७) मूलार्थ व्रतके परिणामकी रक्षा करनी चाहिये ||८|| विवेचन - चारित्र पालनमें जो उपसर्ग तथा परीपह आर्वे तो उनको यथोचित रीतिस दूर करना चाहिये। उपसर्गोस न डरे तथा परी पहको सहन करें। जिस प्रकार चिंतामणिरत्न की रक्षा करनेके लिये प्रत्येक प्रकारके कर सह फर भी तत्पर रहते हैं उसी प्रकर