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यति सामान्य देशना विधि : २७३ विवेचन-समग्रगुणसाध्यस्य-सव गुणोंसे साधने योग्य कार्यका, चदभावेऽपि-आधे गुण अथवा चौथे भागके गुण कम होने पर न तसिद्धयसंभवाद-आधे या चौथे गुणके कम होनेसे बो सिद्धि समस्त गुणसे होती है वह नहीं होती या वह असंभव है।
जिन गुरु शिष्यमें पूर्ण गुण हो तब जो कार्य सिद्ध हो सकता है वह कुछ या आधे गुण कम होने पर असंभव है। अतः पूर्ण गुण होने चाहिये । अन्यथा ऐसा न होनेसे) कार्य कारणको व्यवस्थामर्यादाका नाश होना संभव है।
नैतदेवमिति वाल्मीकिरिति ।।८ (२३४) -सलार्थ-वाल्मीकिके मनसे ऐसा-नहीं है ।।८।।
विवेचन-वाल्मीकि नामक ऋषिका मत है कि वायुने जो कहा है वह युक्त नहीं । अर्थात् पूर्ण गुण ही आवश्यक है ऐसा नहीं है । उसका कारण क्या है ? कहते हैंनिर्गुणस्य कश्चिद्गुणभावोपपत्तेरिति ।।९।। (२३५)
मूलार्थ-निर्गुण भी कुछ गुणकी प्राप्ति कर सकता है ।।९।।
विवेचन-तद्गुणभावोपपत्तेः-उन सब गुण जो गुरु व शिष्यमें होने चाहिये वे उत्पन्न होना संभव है।
निर्गुणी जीवमें भी किसी भी प्रकारको स्वयंकी योग्यता हो तो यह संभव है कि वे सारे गुरु व शिष्यके गुण उसमे उत्पन्न हो सकते हैं। योग्यता होनेसे सब गुण न होने पर भी वे सब गुण उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसा योग्यताके बलसे संभव है । कोई मनुष्य